Sunday, January 6, 2013


द्वैत
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शरीर हो गया एक ऐतिहासिक दोष
दो होंठ,दो गाल
दो स्तन,दो जांघें...
युगल सौंदर्य
दो दशकों में ही जैसे ज़िंदगी हो गई खत्म

ज़िंदगी इतनी तंग हो गई कि
ज़रा सा हिलो तो उधडने लगती है
दीवारों का रहस्य खोले बिना ही
ग्राफिती बदरंग होने लगी
कल न जाने किसकी बारी है?
गलत मत समझना,
लगने लगा है
पास खडा हर आदमी जैसे
जांघों के बीच अपने
भाले को लेकर चल रहा हो
समंदर और आसमान को मिलाकर बुनने पर भी
इस अनादि प्रस्तर युग के नंगेपन को
ढकने के लिए
हाथ भर का कपडा नहीं मिलता

आंख खुलने पर ही तो
पता चलेगा ना
कि सुबह हो गई
जिस अंग में आंखें ही नहीं
उसके लिए
बधिरांधकार ही आनंद है
आंतों को ही नहीं
दिल को भी उखाडते हुए
बदन में अंधेरा सीधे खंता बन
धंस जाता है
गलत मत समझना,
कीडों से कीटनाशन की आशा करते हुए
मृत्यु से अमृत मांगते हुए
जानवरों से जानवरों का बहिष्कार कौन करता है?
मानवता के युटोपिया में
सिग्नलों के बीच मुख्य सडकें
जब बन जाती हैं खामोश आक्रंदन
कान फटनेवाले
सवालों के यहां गोलियां उग रही हैं
तो क्या हुआ?
विवेक पर लाठियां बरस रही हैं
झूठी सहानुभूति,गंदी गालियां
आंसू पोंछ रही हैं
सुरक्षा दलों का फैलाव
आंसू गैस के बादल बन
विश्वासों पर छाने लगा है
शहर एक मृत्यु का हथियार बन गया
अपना और पडोस का घर
हरा घाव बन अकुलाने लगते हैं
हम दोनों का अस्तित्व कायम रहना हो
तो तुम्हें मुझमें
मनुष्यता बन स्खलित होना पडेगा
मुझे तुम्हारे अंदर
मातृत्व बन बहना होगा
शरीर के दोषी हो जाने के बाद
प्राणों के स्पंदन बुझ जाने के बाद
दरिंदगी में तर्जुमा हो जाने के बाद
मरीचिकाओं के बांझपन मेंं
प्रवासी होकर प्रवेश करने के बाद...
मां भी तेरे लिए
एक गलत रिश्ता बनकर रह जाएगी...
गलत मत समझना,
अब यहां लाशघरों के सिवा
प्रसवघरों की कोई ज़रूरत नहीं!

मूल तेलुगु कविता : पसुपुलेटि गीता
अनुवाद : आर.शांता सुंदरी