Monday, April 1, 2013


कृष्णुडु
कृष्णुडु
ए .कृष्णा राव  का पत्रकारिता के क्षेत्र में तीन दशकों का अनुभव है। दिल्ली में लगभग दो दशकों से कार्यरत। पिछले बारह सालों से ‘आन्ध्र ज्योति’ दैनिक में दिल्ली ब्यूरो के चीफ के पद पर काम कर रहे हैं। इससे पहले कुछ और पत्र-पत्रिकाओं में काम किया। वह केवल पत्रकार ही नहीं, लेखक और कवि  भी है। इनके स्तम्भ ‘इण्डिया गेट ‘शीर्षक से पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुके हैं। कवितायें कृष्णुडु  के नाम से लिखते हैं। इनके दो कविता संग्रह छप चुके  हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में साहित्य संबंधी आलेख भी प्रकाशित हुए हैं। उनकी एक कवि‍ता। तेलुगु से इसका अनुवाद आर.शान्ता सुन्दरी ने कि‍या है-
रो रोकर माँ की आँखों सा
लाल हुआ आसमान
खाने को कुछ  नहीं है
‘माँ, भूख लगी है…’
शून्य में ताकती माँ
कुछ नहीं बोली
उसकी आँख बचाकर
धीरे से निकला बाहर
उखड़ते प्राणों में
साँस लौट आई फिर
गलियों की नीरवता को
तोड़ती सेना की गाड़ियाँ
दूर कहीं से सवाल करते
आर्तनाद…
कल परसों तक
सबक सिखाती पाठशालाएं
बन गई हैं सैनिक शिविर
हमारे नन्हे पैरों के स्पर्श से
पुलकित हरी दूब  को
कुचलती जूतों की कवायदें
किसके साथ खेलूँ?
घोंसलों से छितराए पंछियों जैसे
परिवार
निश्शब्द है
बौद्ध मन्‍दि‍र
शव सा बैठा है बुद्ध
इर्द-गिर्द रिसते खून पर
भिनभिनाती हैं मक्खियाँ
घर में माँ नहीं दिखती
ध्वस्त हैं आनेवाले कल के सपने
सड़क पर मौत का वीभत्स
हाथ पीछे बंधी लाशें
लगता है बारिश होगी
कहाँ हो माँ?
कब आओगी?
तुमने कहा था स्वर्ग है
पर वह कहाँ है?
रुकी जीप …
उतरा अंकल …
‘बाबा से मिलोगे?’
‘जी अंकल !’
‘देख तेरे सीने में है
जारे अपने बाबा के पास जा… ‘
पाँच गोलियों में छिपे
पंच-प्राण
आसमान ने भिगोया देह को
आँसुओं से
तभी बादलों की ओट  से
निकल आया बालचंद्र
देखते हुए उसे
बाबा में मिल गया मैं