Saturday, March 19, 2011


स्वतंत्रता की प्रतिमा
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                 बहुत दिन पहले की बात है. एक छोटा देश एक बडे देश से बडी मुश्किल से आज़ादी हासिल करने में कामयाब हो गया.उस छोटे देश की जनता ने चाहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति की यादगार में एक प्रतिमा बनाई जाए और उसे राजधानी में प्रतिष्ठित किया जाए.यह प्रस्तावना उन्होंने सरकार के सामने रखी.सरकार को भी लोगों की बात ठीक लगी और एक शिल्पी को बुलाया गया.वह शिल्पी बहुत ही प्रसिद्ध था और अपनी कला से बेहद प्यार करने वाला था.उसने कई प्रतिमाएं बनाई थीं,जो जीवन से भरपूर  लगती थीं.एक सुमुहूर्त में शिल्पी ने स्वतंत्रता की प्रतिमा को गढना आरंभ किया.संग मरमर के पत्थर से वह प्रतिमा बनाने लगा.
                आज़ादी कडे संघर्ष के बाद मिली थी, इसलिए अपने संघर्ष के इतिहास को हमेशा याद दिलाती रहने वाली, एक महान वीर योद्धा की प्रतिमा बनाने का आदेश शिल्पी को दिया गया.शिल्पी सरकार के आदेशानुसार यॊद्धा की प्रतिमा बनाने लगा.
                पर अमीर लोग पहले से डरते थे कि आम जनता लडकर आज़ादी हासिल करेगी तो उनके अधिकार को नुकसान पहुंचेगा, इसलिए उन्होंने बडे देश के शासकों से संबंध बनाकर,अज़ादी मिलने से पहले ही समस्त अधिकार अपने हाथों में ले लिए.उन्होंने कहा,"यह स्वतंत्रता की प्रतिमा ऐसी हो कि उसे देखते ही लोगों के मन मे नई सरकार के प्रति विनम्र भाव जाग उठे,और शांति बनाए रखने का संदेश भी मिले.इसलिए उसे एक शांत तपस्वी का रूप दिया जाए!"शिल्पी ने उनके आदेश का पालन करते हुए प्रतिमा का रूप बदलकर ,फिर से तराशना शुरू किया.
               देश के पूंजी पतियों में से और कुछ महाशय देश की आर्थिक परिस्थिति को अपनी जेबों और तिजोरियों में छिपाए हुए थे.उन्हें ये आदेश पसंद नहीं आए.उन सबने मिलकर शिल्पी को बुलाकर कहा, "उस प्रतिमा को हमारे देश के व्यापार की आत्मनिर्भरता को दूर दूर तक फैलाने वाले एक महान नौका व्यापारी के रूप में तराशा जाए!"श्ल्पी ने उस आदेश के पीछे काम करने वाले आर्थिक सूत्र को ध्यन में रखकर जी हुज़ूर कहा और अब उस प्रतिमा को एक व्यापारी के रूप में तराशने को उद्यत हो गया.
             इस बीच सरकार में ऊंचे ओहदों पर बैठे कुछ लोगों ने कहा कि यह सब रहने देते हैं और दो तीन सब कमेटियां और चार पांच जांच समितियां बिठाते हैं.फिर उनके सारे रिपोर्ट मंगाकर पढे और सबको अस्वीकार कर दिया, और कहा,"स्वतंत्रता की प्रतिमा में सरकार के प्रति आदर और विनम्रता के भाव दिखने चाहिए.लोगों के मन में सरकार के प्रति भय,भक्ति और श्रद्धा जगाना चाहिए.इसलिए इस प्रतिमा को सायुध सैनिक के रूप में तराशे जाने का आदेश सरकार देती है.सच्ची शांति और लोकतंत्र की रक्षा करने वाली तो सेना ही है.इसके अलावा, कुछ लोग हमेशा खाना ,कपडा और रहने की जगह की मांग करते रहते हैं...आंदोलन करते हैं...आर्थिक समानता का नारा लगाते हुए शोर मचाते रहते हैं...शांति-भंग करते हैं.आज़ाद देश में उनके ये हथकंडे नहीं चलेंगे, यह संदेश देनेवाली प्रतिमा हमें चाहिए.हथियारबंद सैनिक की प्रतिमा बनाई जाए!"इस बात की सार्वजनिक घोषणा भी की गई.शिल्पी फिर प्रतिमा का रूप बदलने में जुट गया.अबतक उसने प्रतिमा में कई बार परिवर्तन कर दिए थे.हथियारबंद सैनिक की प्रतिमा बनकर तैयार हो गई.उसे देखकर पूंजीपति और व्यापारी समान रूप से खुश हुए.दोनों तरफ के समर्थक भी सहमत हो गए.पर आम जनता सरकार के इस रवैयेको देखकर हैरान रह गई.
                      अब एक अच्छा दिन देखकर प्रतिमा को राजधानी में प्रतिष्ठित करना था.प्रतिमा को रखने केलिए वेदी पहले से तैयार करा दी गई थी.उसपर प्रतिमा को रखा गया.सरकार का एक अग्रणी नेता ने पहले एक लंबा चौडा भाषण दिया.उसके बाद प्रतिमा पर पडॆ मखमली कपडे को हटाया.स्वतंत्रता की प्रतिमा आधुनिक हथियार हाथों में लेकर प्रकट हुई...एक भयानक पिशाच के रूप में-
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मूल तेलुगु रचना : शारदा (एस नटराजन.)

अनुवाद :आर.शांता सुंदरी.

1 comment:

  1. स्वतंत्रता की प्रतिमा के पिशाच के रूप में आविष्करण की यह लघुकथा विचारोत्तेजक है.

    आपका अनुवाद हमेशा की तरह उम्दा है.
    बधाई.

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