Monday, November 19, 2012


‘प्रेमचंद घर में’ का तेलुगु में अनुवाद

सभी मानवीय सम्‍बन्‍धों में पति-पत्नी का सम्‍बन्‍ध अत्‍यंत घनिष्ट है और अत्यधिक समय तक उनका साथ बना रहता  है। पति की मृत्यु के बाद उनके साथ बिताए जीवन के बारे में ईमानदारी से लिखने का चलन भारतीय साहित्य में कम ही देखने को मिलता है। ‘प्रेमचंद घर में’ में शिवरानी देवी ने यह करके दिखाया।वार्तालाप के माध्यम से अधिक और स्वगत-कथन के रूप में कई जगह उन्होंने जो भी लिखा उन बातों से न केवल प्रेमचंद के महान व्यक्‍ति‍त्‍व का, बल्कि लेखिका की विलक्षण प्रतिभा का भी परिचय मिलता है। कभी-कभी आगे रहकर उन्होंने प्रेमचंद का मार्गदर्शन भी किया था, ऐसे कई उदहारण इस पुस्तक में मिल जाते हैं। शिवरानी देवी की सूझ-बूझ और निडर व्यक्तित्व उभर आता है।
प्रेमचंद से अपरिचित तेलुगु साहित्य प्रेमी विरले ही होंगे। प्रेमचंद घर में पति, पिता के रूप में कैसे थे और शिवरानी देवी और प्रेमचंद का सम्बन्ध कितना विशिष्ट था, यह जानने के लिए सबको यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिये।
मूल पुस्तक में दि‍ये गये प्रोफेसर प्रबोध कुमार (प्रेमचंद के नाती) और स्वयं शिवरानी देवी के कुछ शब्दों को भी अनुवाद में लिया गया है।(शिवरानी देवी का पूरा वक्‍तव्‍य और प्रबोध कुमार के, ‘मेरी नानी अम्मा’ से कुछ अंश)।

प्रेमचंद में कहीं भी पुरुष होने का अहंकार नहीं था। वह पत्नी की बहुत इज्ज़त करते थे। उनकी सलाह बात-बात पर लेते थे। अगर किसी विषय में मतभेद रहा भी तो बड़े प्यार से समझाते थे। पत्नी से उन्हें बेहद प्यार था। शि‍वरानी देवी बहुत स्वाभिमानी थीं और प्रेमचंद को प्राणों से भी अधिक मानती थीं। प्रेमचंद की ज़िंदगी और मौत से जूझने वाले समय का उन्होंने ऐसा जीवंत वर्णन किया है कि  पढ़ने वालों  का कलेजा मुँह को आ जाता है। प्रेमचंद के बारे में, उनकी रचनाओं के बारे में, साहित्यिक व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, पर शिवरानी देवी की किताब में इन सब बातों  के साथ-साथ बहुत ही अन्तरंग बातें, जो केवल एक पत्नी को ही मालूम होती हैं, उनका ज़िक्र भी किया गया है। पति-पत्नी के बीच सम्‍बन्‍ध कितने सुन्दर, गहरे और प्यार से भरे हो सकते हैं, यह जानने के लिये भी यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।
इस पुस्‍तक का तेलुगु में अनुवाद शांता सुंदरी ने कि‍या है। इसका शीर्षक तेलुगु में ‘इम्ट्लो प्रेमचंद’ (इम्ट्लो मतलब ‘घर में’) है। पुस्तक के रूप में प्रकाशित होने से पहले यह धारावाहिक के रूप में ‘भूमिका’ नामक मासिक पत्रिका में, जनवरी 2009 से जुलाई 2012 तक प्रकाशित हुई। पहली क़िस्त के बाद ही कइयों ने इसे बहुत पसंद किया। प्रेमचंद की केवल रचनाओं से परिचित पाठकों को उनके व्यक्तित्व के अन्दर झाँककर उन्हें अच्छी तरह समझाने का अवसर मिला। प्रसिद्ध कवि‍ वरवर राव ने अनुवादक शांता सुंदरी को दो-तीन बार फोन करके बताया की कुछ अंशों को पढ़कर उनकी आँखें नाम हो गयीं। तेलुगु के अग्रणी लेखकों ने इसे पुस्तक रूप में देखने की इच्छा ज़ाहिर की और इसे सम्‍भव बनाया ,हैदराबाद बुक ट्रस्ट की गीता रामास्वामी ने।
पुस्‍तक: ‘इम्ट्लो प्रेमचंद’
मूल लेखि‍का : शि‍वरानी देवी
अनुवाद : शांता सुंदरी
कुल पन्ने : 274
मूल्य : 120 रुपये
प्रथम संस्करण : सितम्बर, 2012
प्रकाशक : हैदराबाद बुक ट्रस्ट,
प्लाट नंबर 85, बालाजी नगर,
गुडीमलकापुर, हैदराबाद- 500006
This entry was posted by author: admin on Saturday, November 17th, 2012 at 7:07 am and is filed under परिक्रमा | Tags: · , , , , , You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site. | चिट्ठाजगत | Blogvani.com

One Comment »

  • sumit said:
    शि‍वरानी देवी की कि‍ताब ‘प्रेमचंद घर में’ का तेलुगु में अनुवाद में करके शांता सुंदरी जी ने महत्‍पवूर्ण कार्य कि‍या है। इसके लि‍ए उन्‍हें धन्‍यवाद। यहां एक सवाल यह भी उठता है कि‍ अब तक इस तरह की महत्‍वपूर्ण कि‍ताबों का अन्‍य भारतीय भाषाओं में अनुवाद क्‍यों नहीं हुआ है। तमाम अकादेमि‍यां और संस्‍थाएं क्‍या कर रही हैं। क्‍या कुर्सी और पुरस्‍कार के लि‍ए जोड़-तोड़ करना ही साहि‍त्‍य के कर्णधारों का काम रह गया है।

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