Sunday, February 14, 2016

'विमुक्ता ' मूल तेलुगु संग्रह को इस साल के  केंद्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है  . 


ओल्गा का कहानी-सन्ग्रह,'विमुक्ता' का मेरा अनुवाद लगभग दो साल पहले प्रकाशित हुआ था. मूल रचना का शीर्षक भी 'विमुक्ता 'है जिसकी कहानियां सीता से सम्बन्धित हैं.

Sunday, October 18, 2015






  
तेलुगु कहानी का अनुवाद











                                                                    रीच आउट                         तेलुगु मूल ः विजया  कर्रा
                                                                                                            अनुवाद ः आर.शांता सुंदरी


रेणू ने फिर एक बार सेल फोन में टाइम देखा.वह सिर्फ इसलिए परेशान नहीं थी कि बस के आने में देर हो गई,कुछ दूरी पर स्कूटर पर बैठे दो जवान लडके उसकी ओर देख देखकर और कुछ कहते हुए हंस रहे थे और बडी बेशर्मी से उसे ताक रहे थे.साथ खडे सज्जन यह सब अनदेखा करके  सामने की दीवार पर लगे फिल्मी पोस्टर देख रहे थे.बस स्टॉप के ठीक सामने लगे बडे बडे पोस्टरों में बहुत ही कम कपडे पहने करीना और कत्रीना खडी थीं.

जल्दी घर पहुंचकर भौतिकी का असाइनमेंट खत्म करना है, बस जल्दी आ जाए तो बेहतर होगा,रेणू  यह सोच ही रही थी कि दूर से एक बस आती दिखाई दी.दो कदम आगे चली तो पता चला वह उसकी बस नहीं है. पोस्टर देखनेवाले सज्जन उसमें चढ गए और बस चली गई.अब स्तॉप पर वह अकेली थी. बाइक पर बैठा एक लडका मुस्कुराते हुए उसके पास आकर खडा हो गया."और कितनी देर इंतजार करोगी,हमारे साथ बाइक  पर बैठो और हम तुम्हें घर छोड़ देंगे ..."रेणू ने अंदर की घबराहट जाहिर न होने दी और दूसरी ओर सिर घुमाकर देखने लगी जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं.पर मन में सोचने लगी कि अगर लडकों की हिम्मत और बढ गई और हालत खतरनाक हो गई तो क्या करना 
चाहिए.तय किया कि दस तक गिनूंगी और उसके बाद जो भी बस आई उसमें चढ जाऊंगी ,बस नहीं आई तो सडक के उस पार रेस्ट्रां में चली जाऊंगी...एक...दो...तीन...
                                                                *           *          *
आर्या कालॉनी के पास स्कूल बस आकर रुकी.क्लीनर दरवाजा खोलकर नीचे खडा हो गया. चार से दस साल के बीच के बच्चे एक एक करके उतरने लगे.दीपा के उतरते ही उसने उसे छाती से भींच लिया और गाल पर कसकर चुम्मा दिया और नीचे उतारा.खिडकी में से देखनेवाले और पीछे से उतरनेवाले बच्चे जोर से हंस पडे.ड्राइवर ने क्लीनर की ओर हिकारत भरी नजर से देखा.क्लीनर ने ड्राइवर से कहा,"बडी प्यारी बच्ची है !" जैसे अपनी हरकत केलिए सफाई दे रहा हो.ड्राइवर को एल. के. जी. में  पढनेवाली अपनी बेटी याद आई.कुछ कहने को हुआ फिर चुप रह गया.
अपमान,शर्म जैसे शब्द नहीं जानती थी दीपा.पर उसे कुछ अजीब जरूर लगा था ,इसीलिए सिर झुकाए धीरे धीरे पैर खींचते चलने लगी.
बस में से सबसे आखिर नीचे कूदी ग्यारह साल की शक्ति.उसकी नजर दस कदम आगे चलनेवाली दीपा पर थी.उसे पुकारना चाहा ,पर चुप रह गई.अपार्टमेंट के बाहर दीपा की मां खडी थी और दीपा का हाथ पकडकर वह अंदर चली गई.शक्ति भागकर सीढियां चढ गई और अपने फ्लेट का दरवाजा जोर से खटखटाते हुए तीन बार अपनी मां को पुकारा."क्या है शक्ती!एक मिनट भी नहीं रुक सकती?" कहती हुई सविता ने दरवाजा खोला.बस,शक्ति ने अपना बस्ता सोफे पर पटका और कहा,"मां ,फौरन हमें दीपा के घर जाना होगा,"और दरवाजे की ओर मुडी.सविता ने उसका हाथ पकडकर रोका और पूछा," इतनी जल्दी किसलिए,बता?"
"हमारे स्कूल बस का क्लीनर भैया अच्छा आदमी नहीं है,मां! दीपा को बिना वजह छूता रहता है.मुझे वह गलत लगता है.आज उसने उसे चूम भी लिया.सिर्फ दीपा को ही नहीं,बाकी छोटे बच्चों के साथ भी ऐसा ही करता है..." इतना कहकर वह हांफने लगी.यह सुनकर सविता अवाक रह गई.
"दीपा बहुत उदास है , हम जाकर आंटी को उस क्लीनर के बारे में बताएंगे मां! रेणू के आने से पहले लौट आएंगे," शक्ति ने कहा.अपनी उम्र से ज्यादा परिपक्व सोच,और ऊपर से रोज टीवी पर खबरें देखना, जाहिर है कि शक्ति की नजर से ऐसी बतें छुपती नहीं.शक्ति का दीपा की मां को सचेत करने का प्रस्ताव सविता को अच्छा लगा.उसने सोचा,स्कूल बस में जानेवाले बाकी बच्चों के मां बाप से भी बात करके शिकायत करना ठीक होगा,

                                                  *                *               *

तीन...चार...पांच...गिनती पूरी होने से पहले ही  वह बस थोडी दूर जाकर अचानक रुक गई  .  उसमें से दो लडके और तीन लडकियां उतरे और रेणू की तरफ चलकर आए.बस चली गई.

"अरे कितनी देर से खडी हो?बस नहीं आई?" रेणू के पास आकर दोनों में से एक लडके ने पूछा.पीठ पर बैकपैक लटकाए लाल टी शर्ट पहने उस लडके की ओर रेणू ने सकपकाई नजरों से देखा." चेतन ने पहले तुम्हें यहां देखा,तो हम भी बस रुकवाकर उतर गए," एक लडकी बोली,और हल्के से आंख मारकर इशारा किया.पांच  अनजान लोग उससे ऐसे बात कर रहे थे जैसे उसे अच्छी तरह जानते हों.बात रेणू की समझ में आ गई तो वह भी मुस्कुरा उठी और बोली,"हां रे , आज बस के आने में देर हो गई..." . तबतक पास खडे होकर उसे परेशान करनेवाला लडका चुपचाप खिसग गया.अपने दोस्त के पास गया और बाइक पर बैठकर दोनों चले गए।  
तब चेतन ने अपनी जेब से एक कार्ड निकालकर उसे देते हुए कहा, " अगर कभी आपको इस तरह की परेशानी हो,या किसी भी तरह की मदद की जरूरत हो तो इसपर लिखे नंबर पर फोन करें.यह एक हेल्प लाइन का नम्बर है.एरिया के हिसाब से वाट्स अप ग्रूप्स भी हैं.फोन आते ही हम तीन चार लोग मदद केलिए पहुंच जाते हैं.आप अपने बारे में,परिवार,दोस्त सबके  बारे में विवरण देकर हेल्प लाइन का सदस्य बन सकती  हैं.अपने दोस्तों को भी इसके बारे में बताइए." रेणू ने कहा," धन्यवाद,जरूर सदस्य बनूंगी!" उसने मुस्कुराकर कृतज्ञता प्रकट की.

                                                *                         *                         *
पहली मंजिल के कोने के फ्लैट का दरवाजा वह लगातार पीटता जा रहा था. रेणू बैठकर पढ रही थी. उसने अपनी  छोटी बहन से,जो वहीं बैठकर टीवी देख रही थी ,अंदर जाने को कहा और दरवाजा खोलने उठी.शक्ति को टीवी का कार्यक्रम 
बीच में छोडकर जाना बुरा लगा और पैर पटकती अंदर चली गई.सविता खाने की मेज पर प्लेट और खाने के बरतन 
सजा रही थी.उसके  बदन में हल्की सी कंपकंपी उठने लगी.रेणू से कहा,"तुम भी अंदर बैठकर पढो.मैं बात करके भेज दूंगी."मां की बात को अनसुनी करके रेणू ने जाकर दरवाजा खोला और रास्ता रोककर खडी हो गई.आनेवाले से उसने 
पूछ,"क्या बात है अंकल , आप इस वक्त यहां?"पडोसी फ्लैट में रहनेवाला महाशय,जो पीछे खडा तमाशा देख रहा
 था,रेणू को देखते ही चुपचाप  खिसक गया.
रेणू के सवाल का जवाब न देकर उसे हल्के हाथ से परे हटाकर वह आदमी अंदर आ गया.उसके साथ ही ऑल्कहाल की
 तेज बू की भभक भी अंदर आ गई.वह सीधे जाकर सोफे पर बैठ गया और भारी पलकें उठाकर सविता को देखते हुए 
कहा," तुम्हारी बेटी बडी बदतमीज है !घर आए आदमी से सवाल करती है कि क्यों आए?"
"यह लडकियों वाला घर है.इस वक्त आपका आना ठीक नहीं है ना?"सविता की आवाज में अब भी  कंपकंपी थी.
"लडकियों वाला घर है इसीलिए तो हालचाल  पूछने आया हूं.मेरे दोस्त के बच्चे सही सलामत हैं या नहीं यह जानना 
मेरा फर्ज बनता है. पर मैंने जो मदद की  उसे कौन याद रखेगा? मेरा यहां आना अब खटकेगा ही ना ?"उसने ताना कसा। 
सविता को मालूम हो गया कि अब यह श्ख्स हिलनेवाला नहीं,इसलिए वह खाने के मेज के पास कुर्सी पर बैठ गई. वह 
सोच में पड गई, जब पति अचानक चल बसे तो इसी आदमी ने बहुत मदद की थी.बाद में भी पति का पेन्शन वगैरह दिलाने में भाग दौड की.यह सविता के पति के दफ्तर में ही काम करता है.पर कुछ समय बाद उसका रवैया बदल 
गया.पिछ्ले तीन महीनों से पीछे पड़ गया है। जब मन किया घर आ जाता और परेशान करता रहता.नशे में धुत्त आदमी का क्या भरोसा,कुछ अनहोनी हो गई तो पडोसियों को मुंह दिखाने के भी काबिल नहीं रहेगी.रेणू बार बार मां से झगडा करती कि या तो उनके घर जाकर पत्नी को उसके बारे में बताएंगे या पुलिस में शिकायत करेंगे.पति की मौत के वक्त उसकी पत्नी आई थी,पर उसके बाद उससे कभी नहीं मिली.क्या जाने शिकायत करने पर उल्टा हमें ही गलत ठहरा दे ! उसे लगा,अबोध दीपा और सबकुछ जाननेवाली मेरी असहाय परिस्थिति में कुछ खास फर्क नहीं है.
रेणू ने देखा कि वह आदमी उसकी मां को निहारता जा रहा है .उसका ध्यान बटाने केलिए उसने कहा,"अंकल,अंधेरा हो गया ,अब आप घर जाइए." वह आदमी भडक उठा और गुस्से से बोला," पहले तू अपना मुंह बंद रख !"सविता को बुरा 
लगा.खुद रेणू के पिता ने भी कभी इस तरह उसे नहीं डांटा  था.

रेणू से अब चुप नहीं रहा गया दुःख और आवेश उमड पडे. शाम को चेतन का दिया हेल्प लाइन कार्ड किताब में से झांक रहा था.बाहर निकले हिस्से पर 'रीच आउट' शब्द चमक रहा था.उसे बाहर निकाला और दूसरे हाथ में फोन लिया. फोन में दर्ज किए नंबर देखने लगी तो एक नंबर पर नजर पडी.बाल्कनी में जाकर नंबर लगाया.पांच मिनट बात करके वापस अंदर आई और किताब लेकर बैठ गई.बस पांच छः मिनट बाद चौथी मंजिल पर रहनेवाली चंद्रकला सविता को बुलाते हुए अंदर आई और पूछने लगी,"कैसी हो दीदी?"उसके पीछे पीछे उसका पति और दो बच्चे अंदर आ गए.लगा जैसे हडबडी में घर से निकले थे.चंद्रकला नाइटी पहने थी और उसका पति अभी नाइट ड्रस में ही था.
"क्या बात है दीदी,आजकल आप कहीं दिखाई नहीं देती? सोसाइटी की मीटिंग में भी आना छोड दिया.ठीक तो हैं ना?" यह पूछते हुए वह जाकर सविता की बगलवाली कुर्सी पर बैठ गई.उसका पति सोफे पर बैठकर अखबार पढने में डूब गया.पर सविता को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.इस तरह चंद्रकला कभी मिलने नहीं आती.बाहर कभी आमने सामने आ जाते तो मुस्कुराकर हालचाल  पूछकर चल देती थी.उन दोनों के बीच औपचारिक संबंध थे,बस.आज अचानक इस वक्त यह अपने पूरे परिवार के साथ कैसे आ गई?
चंद्रकला दुनिया भर की बातें बताने लगी.अपार्ट मेंट्स में नए आए लोगों के बारे में,उनकी अच्छाइयों और बुराइयों के बारे में बोलती ही जा रही थी.उसका पति जैसे अखबार का एक एक हर्फ पढने में मजा ले रहा था.उसकी आंखें अखबार में ही गडी रह गईं. शक्ति और चंद्रकला के बच्चे खूब ऊधम मचा रहे थे और उन्हें रोकनेवाला कोई नहीं था.रेणू चुपचाप पढाई अर रही थी.
उस नशे में धुत्त आदमी की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा था तो वह जरा सा हिला,जैसे उठना चाहता हो .उसे शायद लगा
 यहां अब रहना ठीक नहीं होगा। जिस मकसद से आया था वह पूरा होने की उम्मीद ही नहीं रही !

Friday, January 3, 2014

१. तितिक्षा

मेरा मन कर रहा है मौन आक्रोश

अविराम सहस्राधिक हृदयों में

गरमी पैदा कर हक्का बक्का करनेवाला था तू

सहानुभूति केलिए

किसीसे तसल्ली पाने केलिए

छटपटाते हुए प्रतीक्षा करना

कितनी भयंकर स्थिति है!

अनबुझ प्यास से लपलपाती जीभ से

सूरज की किरणों पर चढकर

प्रवाहित होना था तुझे

लोगों की भीड भरे जंगल में

एक अनाम पत्ते की तरह चिपके हो

यह कितने दुर्भाग्य की बात है !

तुम्हें ग्रस लिया है किसी सामाजिक रुग्मता ने

पूंछ कटे तारों को देखते हुए

रात के छोर पर चलते चलते

कामना के झुलसे पलों को खोते हुए

अब इस तरह

अनजान भयविह्वलता में दग्ध होकर

मौत को धीरे धीरे चूसते हुए

तुम्हारा एकाकीपन

होकर शमित दमित

पैदा करे किसी एक आकार को

मालूम नहीं

किसी अज्ञात तितिक्षा का

उदय हुआ हो तुझमें शायद!

अब तुझे नहीं बुलाऊंगा वापस

अब तेरी क्रांति के पग

चुस्ती से उठें

इस प्रातः की राह पर

धीरे धीरे चलते चलो.

..............................................

२.विषाद-योगी

अंधकार की लहरों से भरा

अनंत तक फैला मैदान

अहंकार नहीं मिटता मेरा

इसलिए घायल हूं मैं

फिर भी नहीं छूटता मेरा अहंकार

वहां...वह देखो मेरा साथी

धमकाए तो भी

उसके सिवा

कोई साथी मनुष्य का न होना

कितने बडे विषाद की बात है!

मंत्र तंत्र फूंकनेवाले

यंत्रवादी कहां गए?

हमको घेरे हैं मनुष्यों के कंकाल

और सुप्त निश्शब्द

अतीत के वियोग में

घिर आए हैं मन्मथवेदना के वलय

यहीं मधुपान की गोष्ठी

यही है सुरत प्रदेश

सामने समुद्र के राक्षसी मुष्टि के आघातों से

घिस घिसकर टूटे बिना

रिसते खूनी घावों से भरे

क्षतविक्षत हृदय लेकर

बिखरे हैं येराडा पहाड के पत्थर

समुद्र तट पर विषाद योगी

कर रहा है दुःख का अन्वेषण

इस दीर्घ निशीथि में

श्मशान शय्या पर.

अब सुप्रभात होने की

सूचना नहीं है कहीं!


मूल कविता : डा.धेनुवकोंड श्रीराममूर्ति

अनुवाद : आर.शांता सुंदरी

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अक्षरों का अर्तनाद

                                                                  मूल तेलुगु : डा.धेनुवकोंड श्रीराम मूर्ति
                                                                  हिंदी अनुवाद : आर.शांता सुंदरी


क्षमा करो मुझे
संक्षिप्ताक्षर बन सिमटना नहीं चाहता मैं
इसी लिए जा रहा हूं पराया देश बिककर
माफ करो मुझे
ये भयानक प्रवास
हाहाकार
गाली गलौज़
पुतले जलाकर अग्नि कांड
बीच सडक कर्म कांड
ये सारे रास्ते
बन गए नरक द्वार
स्व-नियंत्रित
रहस्यमयी कुतंत्र मॆं
कब जी पाएग
हरेक नागरिक आराम से?

यहां पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण
काम नहीं करता इन्सान पर
बस,है तो सिर्फ धनाकर्षण!
शरीर पर घाव है
पर कहां है नहीं मालूम
आकुल व्याकुल है मन पीडा से


महामाया के तंत्र-योग में है
प्रकाश
सोख लिया जिसे शरीर ने
जाना है जिस देश
वहां गए बिना ही
गुज़रते जा रहे हैं दिन
गली में
किसीके कदमों की आहट
आशा जागती है मन में
कहीं शांति की पदचाप तो नहीं
आज के शिशिर ऋतु केलिए
कल के पत्ते
पीले पडकर
झर रहे हैं

देश की देह को
नदियों में
न बांटनेवाले देश में
इन्सान में भलाई है जिस देश में
पेडों पर कोंपलों की आशाएं
फूटने के देस में
हे प्रभू!
ले जाओ मुझे!!


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जीवन एक यादें अनेक


देह के वस्त्र को
कृष्णा नदी में संचय करते समय
शरीर छोडने की आहट
छोड गए जो यादें मेरे पिता
घेरने लगी हैं मुझे.
कभी किसीके आगे
पसारा नहीं था हाथ
नहीं दिया था किसीको धोखा
नहीं झुकाया था सिर किसीके सामने
पिता जी का रहा
इच्छारहित जीवन
दुःख के मौसम का जीवन
हमेशा मांगते थे
’अनायास मृत्यु’
महामौनि की मौत.

मेरे बाल्य के प्रवाह को
मोड देनेवाले पिता
नादान उम्र में
सावधान और सतर्क रहने की सबक
सिखानेवाले पिता .

खुद को समझने ही लगा था
जब गुज़र गई मां भी
एकांत में रुदन
अंतर्दाह की जलन
अनुभव के स्वप्नों का असहाय विषाद
जीवन एक
यादें अनेक.

देह जब बनने लगे निर्देह
तब पिता की शव-यात्रा.

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गांव डूब गया (सबमर्ज्ड विलेज)


आंखे बंद नहीं
पर देख रहा हूं सपना
अचेतन स्वप्नावस्था में
चलते,तैरते,उडते हुए
धीरे से,धीरज से,भोलेपन से
शाश्वत विनाश में
जल-समाधि में डूबे गांव को
डूबे आदमी के निशान को
ढूंढ रहा हूं मैं.

धेनु विचरता था जिस पहाड पर
राम की अटारी के ऊपर
पीपल पेड के नीचे
झरती यादें
कान्हा की बांसुरी में भरी
चांदनी की हवा
ईश्वर - कुएं की रहट पर
रसीले सुर बजानेवाली उंगलियां
चौपाल पर सुनाया गया
सम्मोहित कर देनेवाला कविता-गान
सुख-शांति से भरा गांव का जीवन
आम इन्सान और महात्मा
बसते थे जहां सुगंध बन महान
नदी के हृदय को हाथों से छूनेवाली
जल-यज्ञ संस्कृति का
ब्रेंड एंबासिडर जैसा
गुंड्लकम्म!*

***

परियोजना का प्रतिबिंब
दिखता है जल्लद के चेहरे-सा
खेत
सूख गए पानी के अभाव में पिछले साल
डूब गए बाढ की चपेट में आकर आज

***

आंसुओं से तप्त
क्षुब्ध क्षण
लेकर देह असंतृप्त कामनाओं की
उतरकर पितृलोक से नीचे
आदिलक्ष्मी कामेश्वरी की करते हुए अर्चना...
अपनी कोई वस्तु यहीं छूट गई
ऐसा सोचकर
उसे ढूंढनेवाले पूर्वज
चमेली के उपवनों
केतकी के परागकणों
रसभरे फूलों के उद्यानों
और तंबाकू के बागानों में
हरे कोमल पत्तों को तोडते
मदभरे गान
गेहूं की बालियों के
फूलों के हार
***

यादें मिटी नहीं
चक्कर काट रही हैं
नदिया के छोरों पर
लिपि नहीं आती समझ में
देख रहा हूं झुककर घुटनों के बल.

*एक नदी का नाम

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