Sunday, April 24, 2011


साफ और हराभरा
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                                                                                            अनुवाद :आर.शांता सुंदरी



चट्टान पर बैठा खांड्या दुःख में पूरी तरह डूबा था.उसकी जान से भी ज़्यादा प्यारी गाय सुबह से चारे को मुंह तक नहीं लगा रही थी.जब पिता ने उसे बताया कि वह एक दो दिन से ज़्यादा ज़िंदा नहीं रहेगी तब से वह रोता जा रहा था. फिर वह उठा और गाय के पास गया.वह चारे से मुंह मोडे कहीं और देख रही थी.वह पास पहुंचा तो भी हमेशा की तरह वह खुशी से उछली नहीं.खांड्या ने प्यार से उसके शरीर पर हाथ फेरा.तब भी उसने उसकी ओर नहीं देखा.

असल में खांड्या और उस गाय के बीच का रिश्ता खून के रिश्ते से कम नहीं था.दोनों का जन्म भी एक ही समय हुआ था.गाय का नाम सीता रखा गया था.सब मज़ाक करते थे कि खांड्या की वह बहन हो गई.उसे भी बचपन से ही सीता से बहुत प्यार रहा. ढूंढ ढूंढकर उसके लिए हरी हरी दूब लाता और खुद अपने हाथों से खिलाता था.वह बीमार हो जाती तो उसे लगता जैसे वह खुद बीमार पड गया हो!जानवर और इन्सान के बीच का संबंध,किसान और फसल के बीच के संबंध जैसा ही होता है.उसका सिर्फ अनुभव किया जा सकता है,बताना मुश्किल है.

मां ने आकर पूछा, "क्यों बेटा,खाना नहीं खाना है?"

"ना, मुझे भूख नहीं है!"उसने जवाब दिया.

"ऐसे कैसे चलेगा बेटा? उसके साथ तू भी मर जाएगा क्या?" मां झुंझला उठी.

वह चुप रहा,पर अगले पल ज़ोर ज़ोर से रोने लग गया.

"चुप हो जा बेटा! जब से यह निगोडी फेक्टरी बनी,हमारे गांव को जैसे पिशाच ने जकड लिया!उसका सारा गंदा पानी नदी नालों में छोडा जाता है.उसे पीकर जानवर मर रहे हैं.खेतों में नमक भर गई और फसलों का सर्वनाश हो रहा है.गांव छोडकर परदेस जाने के दिन आ गए शायद!" आंसू पोंछते हुए मां ने कहा.

"मां,तुम जाओ,मैं थोडी देर बाद खा लूंगा." खांड्या को मन हल्का करने केलिए अकेला छोडकर वह चली गई.

                                   *                      *                    *


खांड्या फिर चट्टान पर चढ गया.वहां बैठने पर पेडों के बीच से जी एन टी फेक्टरी दिखाई देती थी.देखने में बडी सुंदर थी.अजगर जैसी सुंदरता थी उसकी!फेक्टरी का पूरा नाम क्या है,उसके मालिक कौन है, ये सब बातें किसीको मालूम नहीं थीं.पर इतना ज़रूर जानते थे कि वह कपडों की मिल थी.कहीं से धागा मंगाते हैं और यहां उसे रंग लगाकर ले जाते हैं.

इसके आने से पहले यहां के लोग आराम से जीते थे.मवेशियों से आंगन भरे रहते थे.लोगों ने सोचा था कि फेक्टरी के आने से सबको रोज़गार मिल जाएगा,पर छः महीनों में ही उसका असली रंग सामने आ गया.पहले ही सोच समझकर उसे नदिया के किनारे बनाया गया,ताकि उसकी सारी गंदगी...काला बदबूदार पानी...नदिया में छोडा जा सके.

तब से तहस नहस शुरू हो गई.उस नदिया को पास जाकर देखने से रोंगटे खडे कर देनेवाला दृश्य दिखाई देता है.मीलों तक साफ सुथरे पानी की जगह,काला और मैला पानी बहता रहता है.नदिया के बीच इधर उधर बनी छोटी छोटी चट्टनों के इर्द गिर्द मछलियां नहीं, लटकती काई दिखाई देती है.उसमें कहीं किसी प्राणी का आभास नहीं मिलता.नदिया के जीवन को गंदले पानी ने घेर लिया और खतम कर दिया.वह ज़िंदा नदिया न होकर,’मृत नदिया’बनकर रह गई!उसके आस पास बेकार होने से फेंकी गई लोहे की नलियां,और मशीन के फालतू पुर्ज़े नज़र आते हैं. हर तरफ गंदगी फैली रहती है.

जानवर खतम होते जा रहे हैं,फसलें नहीं होतीं, हवा तक ज़हरीली हो चुकी थी.पर पूछनेवाला कोई नहीं था.मिल का मालिक नामी महाशय था.उसे किसीने नहीं देखा.यहां तक कि उसका नाम भी कोई नहीं जानता था.वहां काम करने वाले कर्मचारी भी नहीं.सारा मामला एम.डी ही देखता है.

                                  *                         *                         *

उस दिन सुबह स्कूल में ’सफाई और हरियाली ’ कार्यक्रम बडे जोर शोर से हुआ था.दूर  दूर से पौधे आए.बच्चों ने बडे उत्साह से क्यारियां खोदकर ,पौधे लगाकर,उनमें पानी दिया था.जब वे काम कर रहे थे उनकी तसवीरें भी ली गई थीं.हरेक क्लास को कुछ पौधों की ज़िम्मेदारी दी गई.हरे भरे पौधों का महत्व भी उन्हें बताया गया था.’ हरे भरे पौधे- प्रगति की सीढियां ’,’ साफ सुथरा जीवन-स्वास्थ्य का पहला कदम ’,जैसे नारे दीवारों पर सुंदर अक्षरों में लिखवाए गए थे.

वह गांव मंडल का मुख्य कार्यालय था,इसलिए,ज्वायिंट कलक्टर स्कूल में पधारे थे.बडा ही रोबदार भाषण देकर,स्कूल की उस कोशिश की तारीफ की.जैसे जीवन में पहली बार उन्हें पेड पौधों और साफ सफाई का महत्व मालूम हुआ हो!
वे सब बातें खांड्या को अब याद आने लगीं.

खांड्या को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.स्कूल में तो हरियाली और सफाई की ही बात पर हमेशा ज़ोर दिया जाता है, पर अपनी बस्ती में उसका उलटा दिखाई देता है.सरकार कहती कुछ है,और करती उसका बिल्कुल उलटा है! इसी लिए खांड्या उधेडबुन में पड गया.

                                   *                       *                  *

उस दिन फेक्टरी के पास माहौल गरमाया हुआ था.फाटक के पास चार भैंसों की लाशें पडी थीं.उनके पीछे कुछ बंजारे गुस्से से झूमते खडे थे.सुबह के नौ बजे थे.कर्मचारी काम पर आने लगे.पर बंजारे फाटक के सामने बैठ गए और उन्हें अंदर जाने से रोक रहे थे.

"आज कुछ फैसला होकर रहेगा!"एक बंजारे ने कहा.

"हां, हमारे जानवर कबतक ऐसे मरते रहेंगे?हमारी ज़िंदगियों का क्या होगा?"दूसरे ने सवाल किया.

"आज या तो काम बंद करो या हमें न्याय दिलाने को कुछ करो.चाहे  हमारी जान ही क्यों न चली जाए!हम यहां से नहीं हटनेवाले!"किसी और ने तैश में आकर ललकारा.

"बुलाना ज़रा अपने एम डी को...कब तक छुपा बैठेगा अंदर?...बाहर आने को कहो..."सब मिलकर चिल्लाने लगे.

कर्मचारी भी असमंजस में थे कि क्या करे.असल में उनकी ज़मीनें भी इस फेक्टरी की वजह से छिन गई थीं.बंजारों से उनके मन में सहानुभूति भी थी. पर पेट का सवाल था जो कर्मचारी बनने पर मजबूर कर गया! देर हो जाए तो एमडी का बच्चा काम पर नहीं आने देगा.एक दो ने हिम्मत करके फाटक खुलवाने की कोशिश की, पर बंजारों ने उन्हें रोक लिया.

बंजारों ने चौकीदार को अंदर भेजा कि एम डी को बुला लाए.पर वह अकेला ही वापस आया.कहा कि वे व्यस्त हैं अभी बाहर नहीं आएंगे.यह भी कहला भेजा कि ज़्यादा शोर मचाने पर पुलिस को बुलाया जाएगा!

बस यह सुनते ही बंजारे गुस्से से पागल हो गए.एक तो उनकी भैंसें मर गईं,और ऊपर से पुलिस बुलाने की धमकी मिली."अरे देखते क्या हो भाई,...तोड डालो फाटक को...अंदर जाकर देखें तो सही ...उसे ठिकाने लगा देंगे...!"बंजारे आपे से बाहर हो गए.

" तोडो ...मिटा दो इस मुई फेक्टरी को!"

"खतम कर दो एम डी को..." हर तरफ शोर बढ गया था.

इस बीच बस्ती से और भी लोग आकर इनमें जुड गए.लगभग तीन सौ लोग इकट्ठे हो गए.बस अब तो मामला हाथ से निकला जा रहा था.चौकीदार को धक्के मारकर वहां से हटाया...फाटक पर चढकर फेक्टरी के अंदर घुस गए.काफी तोड फोड की...मशीनें, कुर्सी मेज़,सब तोडे.एम डी के कमरे में पहुंचकर उसे बाहर घसीट लाए.एम डी थर थर कांपने लगा.

इतने में न जाने क्या हुआ,पहली पारी के कर्मचारी लोगों से उलझ गए.उनमें कुछ गुंडे भी आ मिले.लोहे की छडियां,लट्ठ ...जो भी हाथ लगता,उससे पीटने लगे.फाटक पर ताला लगा दिया और लोगों पर टूट पडे.जो फाटक कूदकर जा सके वे बच निकले.पर जो अंदर फंस गए,उनमें से कुछ के सर फूटे,टांगें टूटी. कुछ ही घंटों में पुलिस की गाडियां आ गईं.घायलों को अस्पताल पहुंचा दिया गया और बाकी लोगों को पुलिस पकडकर ले गई.

बचे थे तो सिर्फ छोटे बच्चे... वे अचानक जैसे बडे हो गए!चाहे मन में कितना भी डर क्यों न हो,उनमें प्रतिशोध का बहुत ही कडवा भाव जाग उठा.इतना बडा अन्याय? फेक्टरी लगाने वाले भी वे,और हमें मिटानेवाले भी वे ही...पूछने पर मारते हैं!पुलिस के हवाले करते हैं!...हमसे तो कुत्ते बेहतर हैं... बच्चों के मन में ऐसे बडे बडे विचार आने लगे.

                                 *                       *                           *

उस रात खांड्या के घर में चार पांच बच्चे इकट्ठे हो गए. सबों के दिल में पीडा थी,डर था, गुस्सा था, और प्रतिशोध की भावना थी.कुछ देर सब चुप बैठे रहे.

अचानक एक ने पूछा,"अरे बता तो सही,ये बम कहां मिलेंगे?"

"क्या? ब...बम...किसलिए?"दूसरे ने पूछा.

"किसलिए...अरे एक बम लाकर इस फेक्टरी पर फेंको...पिंड छूटेगा...!"

"उसपर फेंकने से उसमें काम करने वाले मर न जाएंगे?"खांड्या ने कहा.

"यह कौन सी मुश्किल काम है? लोगों को बाहर बुलाते हैं.उस साले एम डी को अंदर बंद करके बम फेंक देते हैं...खतम!"पहले बच्चे ने हंसते हुए कहा.

"अरे छोडो भी यह सब बातें.ज़रा काम की बात करते हैं,"दूसरे ने कहा.

बच्चे देर तक दबी आवाज़ में बात करते रहे.भविष्य के बारे में अपनी समझ के मुताबिक योजनाएं बनाईं.अंत में सब बच्चों में गुस्से का भाव ही ईंधन बनकर स्थिर हो गया.

उस रात चार मानवाकार फेक्टरी की ओर चल पडे.

                                  *                       *                        *

अगली सुबह फेक्टरी की दीवारों पर यह लिखा दिखाई दिया...

यह फेक्टरी एक राक्षस है...इसे खतम करना है!

हमें अपनी फसलें वापस चाहिए... अपने मवेशी वापस चाहिए...अपनी ज़िंदगी वापस चाहिए!

एम डी क बच्चा मुर्दाबाद!

फेक्टरी मुर्दाबाद!

कोयले से...ईंटों से...स्याही से,जो हाथ लगा उससे दीवारों पर लिख डाला. सुंदर दीवारें कालिख से पुत गईं.फेक्टरी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ.बात एम डी के कानों तक पहुंच गई,"इन सालों को तो पिटाई कराके जेल भेज दिया गया था.फिर यह सब किसने लिखा होगा?"बहुत देर तक सोचते रहने के बाद भी कुछ पल्ले नहीं पडा तो उसने उन वाक्यों को पोंछ डालने का हुक्म दिया.

                         *                       *                    *

उस दिन सब बच्चे स्कूल केलिए निकल पडे.उनका रास्ता फेक्टरी से होता हुआ जाता है.वहां सब ओर शांति थी.बच्चे फेक्टरी के नज़दीक पहुंच गए.अंदर हमेशा की तरह काम चल रहा था...बडे इतमीनान से!बच्चों की आंखें कुछ ढूंढ रही थीं.

"देखो तो, रात में हमने जो भी लिखा सब पोंछ डाला इन बदमाशों ने!"गण्या नामक बच्चा ज़ोर से बोला.

"चुप...इतने ज़ोर से मत बोलो!"खांड्या ने मना किया.

"पूरी रात जागकर काम किया था रे!"एक और ने कहा.

"देखते हैं.कल लिखा...आज पोंछ डाला,कल लिखेंगे फिर उसे भी मिटा देगा...परसों फिर लिखेंगे...देखते हैं कब तक यह चलता रहेगा!" रामलाल नामक लडका बोला.

चलते चलते खांड्या अचानक रुक गया.बाकी बच्चे भी रुके.खांड्या ने सर उठाकर देखा, फेक्टरी में सुंदर रंगबिरंगे शीशे लगे थे.सुबह की धूप में और भी चमक रहे थे...

खांड्या ने झुककर एक पत्थर उठाया,इधर उधर नज़र दौडाई.अगले पल सब बच्चों ने कंकड पत्थर हाथों में ले लिए और पीठ पीछे छुपा लिए.

खांड्या ने कहा,"देखो, हम में से हरेक अलग अलग खिडकियों को अपना निशाना बनाएगा.निशाना चूक न जाए इसका ध्यान रहे.बस पत्थर फेंकते ही पेडों में छुप जाओ,समझ गए?"

बच्चों में युद्ध जैसा उत्साह जाग गया.

खांड्या का निशाना कभी चूकता नहीं था.उसने हाथ के पत्थर में अपने मन का सारा आक्रोश भरकर, ज़ोर से एक खिडकी पर दे मारा.तुरंत पांच छः पत्थर और आकर बाकी खिडकियों पर गिरे.अचूक निशाने की शिकार हुईं बहुत सारी खिडकियां.

जिस रफ्तार से पत्थर गिरे उसी रफ्तार से सब बच्चे भागकर पेडों के पीछे ओझल हो गए!


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Friday, April 22, 2011


मृत्यु का दृश्य
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इतवार का दिन,दोपहर का समय था.हवा जैसे थम गई थी,जैसे उसे लाकर में बंद करके किसीने रख दिया हो! बडी उमस थी.

सायन्ना खाना खा रहा था.उसने अपनी बीवी की ओर देखा और कहा,’ज़रा पंखा तो चला देना!" बीवी ने कनखियों से उसकी ओर देखकर कहा,"पिछले महीने करंट बिल चार सौ का अया था,भूल गए?"

"अरे कोई बात नहीं.बडी गर्मी है.खाने का मन नहीं कर रहा है.ठोडी देर के लिए चला दे."वह बीवी का स्वभाव जानता था.पैसे का बडा मोह है उसे.एक भी पैसा खर्च नहीं करने देती...जैसॆ अपनी जान निकालकर देना पड रहा हो,ऐसे बर्ताव करती है.वह कितना भी हाडतोड मेहनत करे तो भी खुश नहीं होती,ऊपर से कहती है,"बस इसी केलिए दिन रात खटते रहते हो?"

उसने नाक भौंह सिकोडते हुए पंखा चला दिया.पंखे की हवा आने लगी तो सायन्ना को राहत मिली...जैसे बदन में जान वापस आ गई हो.

"ज़रा सा छाछ तो डाल दे,"उसने बीवी से कहा. पनीली छाछ डाल दी बीवी ने.

"यह क्या? इसमे छाछ तो है ही नहीं.पानी ही पानी है!"

"हां हां ! तेरी कमाई में यह नहीं तो क्या दही और मलाई वाली लस्सी मिलेगी?" बस,सायन्ना चुपचाप खाने लगा.इतने में बाहर से किसी की आवाज़ सुनाई दी.उसनॆ थाली उठाकर रही सही छाछ पी और बाहर भागा.वहां अरुणोदया अपार्टमेंट्स का वाचमैन खडा था.बोला,"बिजली गई है.साब ने तुझे फौरन आने को कहा है."

सायन्ना के घर के आसपास दो तीन अपार्टमेंट्स हैं.वह पैसा ज़्यादा नहीं मांगता और काम मन लगाकर करता है.इसलिए बिजली का काम हो तो सायन्ना को ही बुलाते हैं लोग.

कमीज़ पहनकर,अपना सामान का थैला लेकर घर से निकल पडा वह.

                                  * * * * * *

अरुणोदया अपार्टमेंट्स के सेक्रटरी बहुत बेचैन था.तीन साल पहले उसने वालंटरी रिटाइरमेंट ले लिया था.दोनों बच्चे अमेरिका में सेटल हो गए.उसने सोचा रिटाइर होने के बाद मिलने वाले पैसों पर जो ब्याज मिलेगा उससे ज़िंदगी आराम से गुज़र जाएगी.पर सरकार ने बैंक के दिपाजिटों पर ब्याज आधा करके रख दिया तो उसके सारे सपने अधूरे रह गए.

इसीलिए वेलफेयर चुनाव में खडे होकर जीत हासिल की और सॆक्रटरी बन गया.हाथ में काम भी है और पैसा भी आता है.कुल साठ फ्लेट हैं.मेइंटेनेंस के नाम पर हर फ्लेट से हर महीने पांच सौ रुपए वसूल किए जाते हैं.यानी महीने में तीस हज़ार.झूटे खर्च खाते में लिखना, किए गए खर्च कुछ बढाकर लिखना,ऐसे काम तो वह खूब जानता है.

एक घंटे पहले ट्रान्सफार्मर में से ज़ोर की आवाज़ हुई और लपटें निकलने लगीं.बिजली गुल हो गई.सॆक्रटरी होने के नाते इसे ठीक कराने की ज़िम्मेदारी उसकी थी... सिरदर्द का काम !पर सचमुच बडी उमस थी.शायद बारिश होनेवाली है.पसीने से बदन तरबतर हो रहा था.वैसे भी कांक्रीट जंगल जैसे बडे बडे फ्लेट.कहीं पेड पौधों का नाम ही नहीं...पत्थर और सीमेंट के सिवा हरियाली तो है ही नहीं!

सायन्ना का इंतज़ार करते हुए वह और भी खीजने लगा.उसे देखते ही पूछा,"इतनी देर क्यूं कर दी ?"

"खाना खा रहा था साब!"कहकर एक ही पल में वह फटाफट त्रान्सफार्मर पर चढ गया.

"ज़रा जल्दी कर,"कहकर सॆक्रेटरी अपने फ्लेट मे घुस गया.मन ही मन खुश हो रहा था कि सायन्ना को दो सौ देकर खाते में एक हज़ार लिख दूंगा.

                                    * * * * * *

श्रीनिवास को बहुत झुंझुलाहट हो रही थी.वह एक टीवी चानल में केमेरामेन था.वह एक ऐसा डाक्युमेंटरी बनाना चाहता था जो पुरस्कार प्राप्त करने के स्तर का हो.वह सोच रहा था कि ऐसा कौन सा विषय होगा जो इस स्तर का होगा.

बाल कर्मचारी,कूडे में से कागज़ बीनत्गरीब,बचपन में ही वेश्यावृत्ति में लगाई गई अभागिन लडकियां,अरब शेखों के हाथों बिकनेवाली अमीनाओं की कहानियां...ये सब पहले ही बन चुके थे.नया विषय चुनना होगा.बिलकुल नया और अनोखा हो.नेशनल गॆयोग्रफी चानल में हाल ही में उसने एक अद्भुत कार्यक्रम देखा था.एक हिरण को बाघ के मारने का दृश्य.बाघ हिरण का पीछा करता है,हिरण जान बचाने केलिए भागता है.बाघ मारना चाहता है और हिरण बचना चाहता है.अंत में बाघ हिरण को पकड ही लेता है.तब केमेरामेन ने उस हिरण की आंखों में माउत के खौफ को बहुत ही स्पष्ट रूप से केमेरे में बांधा था.ऐसा ही कोई विलक्षण च्हॆज़ बनाना चाहता था श्रीनिवास.

सिग्रेट पर सिग्रेट फूंकते हुए सोच ही रहा था कि इतने में ज़ोर की अवाज़ आई.चौंककर उसने खिडकी से बाहर झांका.फ्लेट के सामने बने ट्रान्स्फार्मर से धुआं निकल रहा था.बिजली भी चली गई थी.गर्मी से राहत पाने केलिए खिडकी के पाट पूरी तरह खोल दिए.अब उमस के कारण घबराहट होने लगी तो ठीक से सोच भी नहीं पा रहा था.

कुछ देर चहलकदमी की,लेटने की कोशिश की,लेटा नहीं गया,पता नहीं यह कब तक ठीक कराया जायेगा!उसने तीसरी मंज़िल में रहनेवाले सेक्रेटरी को फोन लगाया.उधर से झिडकी सुनाई दी,"यह चौबीसवां फोन है...!"

एक घंटा बीत गया.

उसने खिडकी से बाहार एक बार और नज़र घुमाई.सायान्ना बडी फुर्ती से ट्रेन्सफामर पर चढ रहा था.वह समझ नहीं सका कि अगर ट्रेन्सफार्मर जल गया तो ऊपर चढकर सायन्ना क्या करेगा.छोटा मोटा रिपेयर तो नहीं कि पैसों के लिए जान जोखिम में डाल दे...जीवन संघर्ष...इस शीर्षक से डाक्युमेंटरी बनाया जा सकता है!यह बात दिमाग में आते ही उसने हेंडी केम चला दिया और सायन्ना पर ज़ूम कर दिया.

                                  * * * * * *

सायन्न दसवीं फेल था.फिर उसने बिजली का काम सीख लिया.अब उसे दस साल का तजुर्बा है.वह एलेक्ट्रिकल इंजीनियर तो नहीं है फिर भी फौरन गडबड समझकर पल में उसे ठीक कर देता है.कहां छूने से जान को खतरा है,यह वह अच्छी तरह जानता था.

उसके हाथ चुस्ती से चलने लगे.वह जल्द से जल्द नुक्स को पकडकर उसे ठीक कर देना चाहता था.किसी दूसरी जगह से भी बुलावा अया था.यह काम खतम करके वहां जाएगा तो पैसे ज़्यादा मिलेंगे,यही सोच रहा था.उस समय अचानक उसे अपनी बीवी याद आ गई.उसकी कैंची जैसी चलती ज़बान,पैसों का मोह,घायल कर देनेवाली बातें,हज़ार वोळ्त के झटके की तरह सताने लगे.

ध्यान बटने से हाथ फिसल गया,ऐसी जगह पर पडा जहां पदना नहीं चाहिए था.सायन्ना चीखकर उछल पडा.मानो हाथ को किसीने धारदार चाकू से ज़ोर से कात दिया हो,ऐसा दर्द उठा.ट्रान्सफार्मर पर बने जंगले पर धडाम से मुंह के बल गिर गया.

चीख सुनते ही श्रीनिवास सतर्क हो गया.इतना ज़ोर का झटका लगा...अब यह बच नहीं पाएगा.यह सोचकर उसने केमेरा सायन्ना पर ज़ूम किया.वह अभी सांस ले रहा था.मृत्यु वेदना से छटपटा रहा था...मौत के मुंह में जा रहा था.रह रहकर उसका शरीर झटके खा रहा था.इसका शीर्षक, मौत का दृश्य रखा जा सकता है,यह सोच मन में आते ही वह बडे ध्यान से दृश्य का चित्रण करने लग गया.

उस अपार्टमेंट मे रहने वाले लोग बाहर आकर सायन्ना को देखते खडे रहे.सेक्रेटरी भागता हांफता आ गया.कटी पतंग की तरह ट्रेन्शफार्मर के जंगले पर निढाल पडे सायन्ना को देखकर उसकी बी पी बढ गई.वह परेशान होने लगा कि पैसा बचाने के चक्कर में यह कैसी झंझट सिर पर ले ली !उसने गौर से देखा.सायन्ना के शरीर में हरकत बिलकुल नहीं हो रही थी.यह कहीं पुलिस केस न बन जाए यह सोच मन में आते ही वह सिहर गया.इतने में किसीने कहा,"बिजली विभाग को फोन लगाइए.वे जबतक पवर सप्लाइ बंद नहीं करेंगे इसे नीचे नहीं उतारा जा सकता.बस सेक्रेटरी फोन करने को दौड पडा.

                                   * * * * * *

बिजली के दफ्तर में सांबमूर्ति अखबार के पन्ने पलटता बैठा था.वह भी नाखुश था.नाम के वास्ते बिजली का दफ्तर है,पर ऊपर पंखा न जाने कितने पुराने युग का है!हवा कम और शोर ज़्यादा देती है.कभी भी टूटकर गिर सकता है,यह डर बना रहता है.बडी उमस थी.

और दो घंटों की बात है,फिर ड्यूटी खतम हो जाएगी.मुझे रिलीव करने जो आता है वह बदमाश तो शराबी है.पता नहीं समय पर आएगा या नशे में किसी सडक किनारे पडा होगा!वैसे भी आज खास दिन है.बीवी बच्चों को लेकार गांव गई है.शाम को श्यामला को बुलाया है.वह ताला देखकर कहीं लौट न जाए.उसे चमेली के फूल बहुत पसंद हैं.रास्ते में खरीद लूंगा.साथ में क्वार्टर बोतल व्हिस्की और दो चिकेन बिरियानी के पेकेट भी!

फोन बज उठा.उधर से किसीने कहा,"ट्रान्सफार्मर पर चढकर एक लडका बिजली का झटका लगने सेगिर पडा."यह सुनते ही सांबमूर्ति तनकर सीधा बैठ गया.पूछा,"कहां?"

जवाब आया,"वहीं ट्रान्सफार्मर पर ही..."

"मैं पूछ रहा हूं आप कहां से बोल रहे हैं? हादसा कहां हुआ?"

उधर से पता बताया गया.

तुरंत सांबमूर्ति को तसल्ली हो गई."प्राइवेट आदमी को ट्रान्सफार्मर पर नहीं चढाना चाहिए,क्या अपको मालूम नहीं?"उसने कहा.

"वह सब बाद में देखेंगे.हमें यह भी मालूम नहीं कि लडका ज़िंदा है या मर गया...उसे नीचे उतारना है.आप फौरन इस एरिया का कनेक्षन काट दो!"

"मैंने कंप्लेंट लिख लिया है.आपका नंबर है, छत्तीस.सब कर्मचारी कंप्लेंट ठीक करने बाहर गए हैं.आते ही भेज दूंगा."

"मैं ट्रान्सफार्मर की मरम्मत की बात नहीं कर रहा हूं.इस लाइन की बिजली काट देंगे तो हम उस लडके को उतार लेंगे."

"मैं भी यही कह रहा हूं जनाब! कंफ्लेंट लिख लिया है.जब भी बन पडेगा भेज दूंगा!"

"अरे! आप हालत की नज़ाकत को समझो भाई!यहां आदमी मौत से झूझ रहा है और..."साम्बमूर्ति ने फोन काट दिया.सरकारी नौकर जैसे सबका नौकर हो गया.ऐसे चिल्ला रहा है जैसे मेरा बास है.बुलाते ही दौडकर जाना होगा?वह झुंझला उठा.

                                    * * * * * *

वाचमेन ने खबर दी तो सायन्ना की बीवी रोती कलपती आ गई.सेक्रेटरी को पहले ही डर था कि कहीं यह पुलिस का केस न बन जाए.अब यह औरत इतना शोर मचा रही थी तो उसका दिल ज़ोरों से धडकने लगा.

ऒते रोते उसने सेक्रेटरी को देखा तो कहने लगी,"आपने बुलाया तो चला आया साब!वह नहीं जानता था कि यह मौत का बुलावा है!"

यह सुनते ही सेक्रेटरी का दिल धक से हो गया.और कुछ देर इसी तरह बोलने दिया तो साफ कहेगी कि तुम्हारी वजह से ही मरा है!उसने मन ही मन हिसाब लगाया.पुलिस केस होगा तो हज़ारों रुपए खर्च करनॆ पडेंगे.इससे अच्छा है कि पैसे का लालच देकर इसका मुंह बंद किया जाए.यह सस्ता सौदा होगा.हर एक घर से पांच सौ मिल जाए तो भी तीस हज़ार रुपए हो जाएंगे.और थाने के चक्कर काटने से भी बच सकते हैं.पति मर गया...अकेली औरत...बेसहार बेवा...ऐसे कहने पर हर कोई पैसा दे देगा.

ऐसा सोचते ही वह उस औरत के पास गया और तसल्ली देते हुए कहा,"तुम दुखी मत हो.सायन्ना बडा अच्छा है.हमारे कांप्लेक्स में हर कोई उसे जानता है और मानता भी है.हम सब मिलकर पच्चीस तीस हज़ार तुम्हें देंगे.उससे कुछ काम धंधा करके गुज़ारा कर लेना."

यह सुनते ही एक पल केलिए उसकी आंखों में आशा की चमक कौंध गई.पर उसे छुपाते हुए फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी,"हाय मैं क्या करूं...मेरा सुहाग चीन लिया तूने हे भगवान...दया नहीं आयी तुझे...!"

                                        * * * * * *

"धत् तेरे की...इस एस आई साले को मुफत के केस ही मिलते क्या?" थाने से बाह्र आते ही पुलिस सिपाही से यह कहकर दूसरी ओर मुंह करके थूक दिया हेड कानिस्टेबल ने. सिपाही ने सिर हिलाकर हां में हां मिलाया.हेड ने फिर कहा,"वह कोई गधा ट्रान्सफार्मर पर चढकर मरा तो हमारी शामत आ गई!उसे नीचे उतारना,लाश का पंचनामा कराना,असे उसके परिवारवालों के सुपुर्द करना, ये सारे काम करने तक हमारी ज़िंदगी कुत्ते की ज़िंदगी ही रहेगी!"

"मैंने तो एस आई के घर बरतन भी मांजे,मेडम केलिए सब्ज़ी खरीद लाया...इसके बावजूद वह हमसे खुश क्यों नहीं है,समझ में नहीं आता."

"अरे,समझा कर! उसकी जात और हमारी जात अलग है.यही असली वजह है.मुझे गुस्सा आ गया ना तो इसपर डी जी पी को लिखूंगा...इसके खिलाफ केस कर दूंगा हां! तब देखना इसे नक्सलाइट एरिया में भेज दिया जाएगा!"

बत करते करते दोनों अरुणोदया अपार्टमेंट्स पहुंच गए.पहलॆ सोचा था कि यह फायदा का सौदा नहीं था,पर सेक्रेटरी के बर्ताव को और उसके डरे डरे चेहरे को देखते ही वह समझ गया कि कहां ज़ोर देने से पैसे मिलेंगे.उसने सारा मामला सेक्रेटरी से उगलवाया.केस निपटाने के लिए कितना खर्च होगा यह बता दिया.आधे घंटे तक दाम पर बहस करने के बाद कुछ तय हुआ तब देखा सायन्ना की ओर ,जो चमगादड की तरह लयका था.

"अब पांच बज चुका है.यह तो बहुत देर पहले मरा था न?अबतक लाश को नीचे क्यों नहीं उतारा?क्या कर रहे थे आप?"वह गरजा.

"उसे उतारने के लिए ऊपर चढना था.पवर बंद नहीं किया गया तो कैसे चढते?आप ही कुछ करो ना?" गुस्से को पीकर सेक्रेटरी ने कहा.

"मुझे क्या पता? क्या मैं कोई एलेक्ट्रीषियन हूं?
फिर एक बार फोन करो.कहो एस आई साहब का हुकम है.नहीं मानता तो ऒप्पर बैठे अफ्सर को शिकायत करेंगे!"

छ्ह बजे जीप में बिजली विभाग से एक एई और दो कर्मचारी आए.सेक्रेटरी से कुछ देर बात करके इंजीनियर ने ऊपर सायन्ना की ओर देखा और कहा,"इतना बडा झटका लगने के बाद बचना मुश्किल है.वह तो मर गया होगा."

"अरे क्या हम नहीं जानते वह मर गया है?इसके लिए तेरे सर्टिफिकेट की ज़रूरत है क्या?"मन ही मन सेक्रेटरी बुदबुदाया और कहा,"आप बिजली बंद करवाओ तो हम लाश को उतारें!"

"नहीं पहले मेरे बास को रिपोर्ट करना पडॆगा,"यह कहकर तीनों वापस जीप में बैठकर चले गए.

                                       * * * * * *

श्रीनिवास बहुत खुश था,जैसे कोई बहुत बडा काम कर रहा हो.रह रहकर सायन्ना के शरीर में होनेवाली हरकत देख वह फूला नहीं समा रहा था.मृत्यु के पलों को इस तरह क्लोज़प में बांधना ही एक रिकार्ड है,इस बात से उसका उत्साह और बढने लगा.

वाचमेन की बीवी, ऐलम्मा,को यह सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था.उसकी उम्र चालीस के करीब होगी.छरहरा बदन पर मेहनत करने की वजह से चुस्त बहुत थी.गांव में बिजली के तारों से उलझने से जलकर मरनेवाले कौवों को उसने एक दो बार देखा था.सायन्ना को देखकर वे कौवे याद आए तो उसका मन भर आया.उसे उतारने की कोई कोशिश नहीं कर रहा है,इस बात से वह हैरान थी.उसने तय किया कि अब किसी से उम्मॆद न करके खुद कुछ करना चाहिए.वह जाकर सीढी ले आई.उसे ट्रान्सफार्मर से लगाया और साडी को दोनों पैरों के बीच से बांधकर चधने को ताइयार हो गई.

"ऎ...क्या करती है?...मरेगी तू...बिजली चालू है..."वाचमेन नीचे से चिल्लाया.

"कुछ नहीं होगा...नहीं मरूंगी मैं...तू चुप रह!"

वह ऊपर चढ गई और ट्रान्सफार्मर को छे बिना खडी हो गई.एक हाथ की दूरी पर पडा था सायन्ना का शरीर.

"छूना मत... झटका लग जाएगा और तू भी मरेगी..."वाचमेन फिर चिल्लाया. इस बार उसे भी डर लगा.

नीचे उतर आई और घर से लकडी का लंबा टुकडा ले आई.वह दो फुट लंबा था.उसने उससे सायन्ना के शरीर को धकेलने की कोशिश की.धकॆलना आसान था,पर नीचे गिरने से कहीं सर फट गया तो!"नीचे देखते हुए कहा,"एक गद्दी डाल दो नीचे."

"अरे मरे हुए को चोट का डर क्या? नीचे फेंक दो!"वाचमेन ने कहा.

उधर श्रीनिवास बडी चुस्ती से यह सब रिकार्ड कर रहा था.

सेक्रेटरी ने अपने घर से गद्दी मंगवाई.नीचे चटाई डालकर उसपर गद्दी डाली और पुरानी चादर भी बिछाई.

ऐलम्मा ने पूरा ज़ोर लगाकर सायन्ना को नीचे की ओर धकेला.धम्म से वह गद्दी पर गिर पडा.

सब लोग उसकी ओर भागे.सायन्ना की बीवी फिर रोने लगी.

हेड ने सायन्ना की नाक के पास उंगली रखकर देखा.कुछ समझ नहीं आया तो छाती पर हाथ रखकर देखा और दो मिनट बाद चिल्लाया,"यह अभी ज़िंदा है!एंबुलेन्स को फोन करो..."

आधे घंटॆ बाद एंबुलेन्स आयी.जब सायन्ना को उसमे चढाया जा रहा था तो उसमे सांस बकी थी.अस्पताल पहुंचने से पहले,बीच रास्ते में वह मर गया.

                                               * * * * * *

श्रीनिवास ने केमेरा बंद किया उर अलमारी में रख दिया.

सांबमूर्ति तीन पेग पीने के बाद श्यामला के साथ बिरियानी चखने में लगा था.

इस अचानक आए खर्च को किस तरह भरा जाए इसी सोच में डूबा था सेक्रेटरी.

क्रिया कर्म के खर्च तो देदिए,पर वह पच्चीस तीस हज़ार दॆगा या नहीं यही चिंता सायन्ना की बीवी को बेचैन कर रही थी.उस समय साथ कोई भी नहीं था जो गवाही दे सके,यह सोचते ही उसका दिल बैठने लगा.

"मैंने यह काम तीन घंटे पहले किया होता तो वह बच जाता..."ऐलम्मा को यही सोच खाए जा रही थी.वह अपराध बॊध से ग्रस्त हो गई...

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मूल तेलुगु कहानी : सलीम

अनुवाद : आर.शांता सुंदरी

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Saturday, April 9, 2011


वाघा बार्डर
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मनुष्यों के जीवन के बीच उगी
उद्विग्न रेखा को देखा है आपने कभी?
नहीं तो चलिए वाघा बार्डर पर.
अमृतसर के पास
भारत पाक के बीच उगा नासूर है यह.
एशिया के मानचित्र पर खींची थी अंग्रेज़ों ने
यह विषम रेखा कभी
संबंधों में दरार डालने वली यह खून की रेखा.

सरहद का मतलब आप क्या जाने?
कहा मेरे एक पंजाबी मित्र ने
हम पैदा हुए थे सरहद पर
सरहद बहती है हमारे अंदर
सरहद ज़िंदगी हमारी
सरहद खौफ हमारा
सरहद साहस हमारा
सरहद संघर्ष हमारा
दूर दराज़ प्रांतों में रहने वाले आपको
हमरा संकट सिर्फ एक खबर है.
दो देशों के शासकों के दिमाग में उपजी एक सोच
आग सुलगाती है सरहद पर.

आमने सामने हैं
दोनों देशों के फाटक
दॊनों देशों के झंडे.



मूल तेलुगु कविता :के.शिवारेड्डी

अनुवाद :आर.शांता सुंदरी
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आसमान-सा सिर लेकर
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कौन घूम सकता है आसमान-सा सिर लेकर
धरती जैसे पैरोंवाले के सिवा-
सीपी जितनी बडी आंखें किसकी हो सकती हैं
आंसुओं को छानकर मोती बनानेवाले के सिवा-
अपने बदन को जहाज बनाकर कौन सफर कर सकता है
संसार को सागर समझनेवाले के सिवा-
फूल जैसे मानव-मन में कौन घुस सकता है
मधुभक्षी पक्षी की नाक जैसी नज़रोंवाले के सिवा-
जीवन और सृजन के बीच कौन बांध सकता है पुल
जतन से अनुभवों की कांवर ढोनेवाले कॆ सिवा-
सिर काटकर अपना कौन कर सकता है समर्पित सरस्वती को
कहीं भी किसी का भी सामना करने को तैयार
धीरोदात्त कवि के सिवा !

*             *                *                *                *                *               *                *


एक वाक्य यों घुस आता है
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एक वाक्य ऐसे घुस आता है
अरब के ऊंट की तरह
जैसे
भूखा चोर सबसे पहले रसोईघर में घुस आए
अपरिचित दीवर लांघकर
घर में घुस आए.

दो बजे का वक्त
नींद सडक पर बिखरे दूध -सा
धूल में मिल जाने के बाद का वक्त
बिजली की बत्ती के इर्द गिर्द जैसे मंडराने लगें मधुमक्खियां
ऐसे ही
तरह तरह के खयाल,बेचैनियां,दुःख
खट्टे डकार जैसी पुरानी बातें.

एक वाक्य ऐसे घुस आता है
निडर,निस्संकोच
तो तुम्हें उठकर बैठने को कर देता है मजबूर
लाठी लिए आता है कोई
लालटेन लेकर आता है कोई
अप्रत्याशित मोडों से होते हुए
गुज़रने लगता है जब जीवन
ऐसे विचित्र विच्छिन्न स्थिति में
तुम्हें दफनाया जाता है जब
और कुछ नहीं बचा रह जाता
धरती के शून्य तल को छोड.

सोचने लगते हो जब तुम यों
घुस आता है एक वाक्य अचानक
तब बदल जाती हैं तुम्हारी सारी रूप-रेखाएं
खिलोगे तुम
एक तेज का वलय बन
पेडों का एक झुरमुट बन
मीठी रहस्यमयी आवाज़ें
निकलने लगती हैं तुममें से
एक वाक्य घुस आता है तब
और
बुढापा खत्म हो जाता है.

*                      *                      *                 *                    *                 *                    *

टूटे बिना
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टूटे बिना
खडे रहने का समय है यह
चूर चूर हुए बिना
चलते रहना है इस वक्त
सबकुछ ढहता जा रहा हो जैसे-
बिना पकड में आए
हाथ से फिसलता जा रहा हो जैसे-

कल परसों तक
हाथों में जो था सुरक्षित
आज बिखरता जा रहा हो जैसे-

चारों कोने मिलाकर बांधकर
सबकुछ उसमें डालकर
कंधे पर रख निकल पडना है
इस वक्त.

अबतक
सबकुछ तुम्हारे अधीन लगता था
अब अचानक
हर तरफ छितर गया हो जैसे-
इकट्ठा नहीं किया जा सकता हो जिसे-

*                      *                          *                             *                           *

एक सपना
========

वह लेटी है यों ही
सिकुडकर कुत्ते के पिल्ले की तरह
उसके ऊपर से निकलती जा रही हैं
गर्मियां,बरसातें
और सर्दी के मौसम की सर्द हवाएं
पर
देर से आई वसंत ऋतु
बैठ गई उसके पैरों के पास,


वह यों ही लेटी है
जैसे किसी लंबे सपने को
किसीने गठरी बांधकर रख दी हो
जाते वक्त साथ ले जाना भूल गया हो.

*                    *                      *                          *                            *  

एक और सपना
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आठवां महीना लग गया
चलना भी मुश्किल हो गया
आंखें धंस गईं
लेकिन
डोल रहे हैं कुछ सपने
उसकी आंखों के इर्द गिर्द
उसके बदन को घेरे हैं
तरह तरह की तितलियां रंगबिरंगी
बार बार
पेट पर हाथ फेरती उस बिटिया रनी के पेट में
एक युद्ध है
एक स्वर्ग है
एक देश है!

*                        *                           *                           *                           *  

पानी
====

वह देखता रहता है बैठकर वहीं पर
आते-जाते लोगों को
गाडियों को
और समस्त संसार को
उसी जगह बैठकर देखता रहता है.
घंटे,दिन,साल बीत जाते हैं
शायद लत लग गई है उसे देखने की
सांस लेने जैसी ज़रूरत बन गई -

बुत-सा दिखता है
पर
नित नई हरकतों से
कई नदियों को
अपने अंदर बहा लेने का स्वभाव है उसका
अनवरत वहीं
नदिया के तट पर या बगीचे के बीच रहता हो जैसे-
या व्योम में घूम रहा हो जैसे-

बिना हिले ही हिलना,हिल जाना
कंपन से भर जाना
जानता है वह-
उसकी आंखों में भरा है एक प्रवाह
हवा हो चाहे हो पानी
या हो सुनसान एकांत सडक
देखने की आदत जो है
बिना देखे क्या रह सकता है?

देखते देखते अचानक लेता है डुबकी
ऊपर आता है फिर बत्तख की तरह.
कैसे देखना है किसे देखना है
यह हमें उससे सीखना होगा
क्योंकि
वह जानता है
देख देखकर पसीज जाना.

*                      *                          *                         *                           *

अब भी
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अब भी
वे वहां मिलते ही रहते हैं
जब कि
सबकुछ जहां का तहां टूटकर
गिरता जा रहा है
इन्सान माल बनते जा रहे हैं
सभी रास्ते
कटे सांप बन छटपटा रहे हैं
पेडों के सिर कटकर
नींद न आने से रो रहे हैं
आवेश खून की बरसात कर रहे हैं
बादलों के परिंदों के पर
कटकर गिर रहे हैं
बच्चों के चेहरों में बूढे नज़र आ रहे हैं

मानसिक संसार के कैदखानों को पार कर
निरर्थक व्यापार के लोभ की भीड को चीरते हुए
वे वहां मिलते ही रहते हैं-

बहुतों के लिए यह एक अचंभा है
ज़रा-सा प्यार,एक चुटकी ज़िंदगी,थोडी सी दया
रत्ती भर निस्वार्थ भाव बचे हों जिनमें
वे अब भी मिलते ही रहते हैं वहां!

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