अभी बहुत कुछ बदलने को है मूल तेलुगु कहानी :रमणजीवि
अनुवाद : आर.शांता सुंदरी
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अगस्त २०७८
शाम के पांच बजनेवाले थे.
अबीद्स रोड.आठ साल का बच्चा स्केटिंग कर रहा था.एक फर्लांग दूर से आती साइकिलों की आवाज़ सुनकर पीछे मुडकर एक बार देखा और फिर अपने खेल में मगन हो गया.सडक के बीचों बीच दो गाएं और एक भैंस आराम से बैठे जुगाली कर रही थीं.
"मुझे यकीन नहीं होता कि यह अबीद्स है.लगता है संपूर्ण सूर्यग्रहण,या कर्फ्यू लगा है,"साइकिल को खडी करते हुए एक बीस साल की युवती ने कहा.उसका नाम नीता है.सफेद चूडीदार में उसका बदन बहुत ही कमज़ोर दिख रहा था.उस सडक को देखने के बाद वह अपने मां बाप का अता पता न मालूम होने का दुःख भी भूल गई.
इतनी गाडियां कि तिल रखने की भी जगह नहीं रहती थी यहां.हर तरफ धुआं,जलने की बू,दिल दहलानेवाली आवाज़ों से भरी रहती थी वह जगह.पर अब...!
साथ आई नर्स हंस पडी,"तुम चार साल कोमा में रही.अब अचानक देखने से ऐसा लग रहा है.वरना हमें तो इनकी आदत हो गई है."
’किनकी?’नीता ने आंखों में इस सवाल के साथ नर्स को देखा.
मल्टी स्टोरीड बिल्डिंगें,बडी बडी दुकानें सब बंद हो गईं.उनपर धूल जम चुकी थी.ग्लोसाइन बोर्डों का भी यही हाल था.न जाने कबसे उनका जगमगाना बंद हो गया था!दूर की सिर्फ दो दुकानें खुली थीं और साफ सुथरी नज़र आ रही थीं.बाहर तीन साइकिलें खडी थीं.नीता ने अंदाज़ा लगाया कि अंदर कुछ खरीदार होंगे.
"अरे,इन्सान सब कहां चले गए?...सिर्फ गाडियां..."नीता ने हैरान होकर पूछा.यह देखकर नर्स फूली नहीं समा रही थी.जैसे ये सब करतब उसी का हो!
"कुछ और बातें सुनोगी तो तेरे होश उड जाएंगे!अब इस दुनिया में एक भी मोटर गाडी या हवाई जहाज़ नहीं है...जानती हो?सबको तोडफोड दिया गया.स्क्रेप...सफाचट...!"नर्स ने हाथों के इशारा करते हुए कहा.
नीता को चुप देखकर नर्स ने फिर पूछा,"अच्छा यह बताना अब दुनिया में कितनी आबादी है?"
नीता की आंखें मुंद गईं.पर उसने फिर भी जवाब में कुछ भी नहीं कहा.
"सिर्फ छः करोड से कुछ ऊपर.हैदराबाद में बत्तीस हज़ार.केन यू बिलीव?"उसने रंग बदलते नीता के चेहरे की ओर चमकती आंखों से देखते हुए कहा
"ओह...!" कहकर नीता जल्दी से एक दूकान की सीढियों पर जाकर बैठ गई.नर्स ने भी उसके बगल में बैठकर नीता के कंधे पर हाथ डाला.
"जानती हो अब पैसे नाम की चीज़ भी नहीं रही.सबको हर रोज़ तीन घंटे काम करना पडता है.आज अस्पताल में तो कल जूतों की दुकान में....परसों कपडों की दुकान में...फिर खेतों में...अब मज़हब भी खतम हो गए.देश अलग अलग नहीं हैं...सरकारें भी नहीं हैं...सिर्फ लोग हैं...बस...’जिन बातों को समझाने में कुछ रोज़ लग जाते,नर्स उन्हें पलों में बता देने की कोशिश कर रही थी.
नीता को लगा, नर्स मुझे बुद्धू बना रही है,या यह सब एक सपना है.
"चलो वह सब छोडो और यह बताओ कि असल में हुआ क्या था?...प्लीज़!"
"चार साल पहले की बात है.नवंबर की सातवीं तारीख को..."
* * *
नवंबर सात तारीख,२०७४
योगी अपने फार्म हाउस के बाहर आराम कुर्सी पर बैठा था.उसकी उम्र चालीस से ऊपर थी.सूती कमीज़ जीन्स पहने छरहरा बदन था उसका.उसकी आंखें खुली तो थीं पर नज़रें कहीं टिकी नहीं थीं.पीछे के बालों को रह रहकर खींचते हुए किसी सोच में डूबा था वह.
फिर उठकर थोडी दूर पर चारे के लिए बेचैन खरगोशों के पास गया और उनके सामने घास और सब्ज़ी के टुकडों से भरी टोकरी उंडेल दी.उन्हें प्यार से निहारते हुए उनपर हाथ फेरने लगा.थोडी दूर घास चरते हिरनों की ओर और सूखे पेड की डाली पर बैठे चिंपांज़ी की ओर देखता रहा.
अपने अहाते में निर्मित जलाशय के पास जाकर,मगरमच्छों को देखा.उनमें एक डोरी नाम की मादा मगरमच्छ अंडे देने वाली थी.
हाथ जीन्स की जेब में घुसाकर चारों ओर उसने नज़र दौडाई,ऊंची चारदीवारी के बाहर हवा में हल्के से झूमते लंबे पेड थे.उन पेडों पर बैठी चिडियां मीठी आवाज़ में गा रही थीं.शाम का वक्त था.
योगी की आंखों में उन सबसे अल्विदा कहने का भाव था!
एक बार पीछे के बालों को ज़ोर से खींचकर उसने गेट पूरा खोल दिया.अहाते में से सभी जानवरों को बाहर भगा देने के बाद जलाशय का गेट खोला.तेज़ी से हमला करनेवाले मगरमच्छों से खुद को बचाने के लिए उछलकर दूर गया हो और उन्हें भी चालाकी से बाहर भागा दिया.उसके बाद फार्म हाउस में जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया.प्यार से पाले सारे जान्वरों को खुले संसार में छोडकर,अंदर ज़मीन पर एक खुफिया दरवाज़ा खोला और नीचे उतर गया.
सेल्लार में एक बडी मशीन थी जो रस्सियों में बंधे हाथी जैसी दिखाई दे रही थी.उस पर बेतरतीबी से फैले थे कुछ तार और पाइप.चौबीसों घंटे बैकप के सहारे काम करनेवाला जायंट कंप्यूटर था वह.
सभी सिस्टम्स में काम चल रहा था.योगि ने एक बार हाथ की घडी की ओर देखा और एक कोने में रखी फ्लास्क से गरमागरम काफी मग में भरकर,रिवाल्विंग चैर पर बैठ गया.मेज़ पर रखी सिस्टम में ’सेवियर’शीर्षक वीडियो फाइल उसने खोला.तुरंत मानिटर के परदे पर योगी प्रकट हुआ.
’गुड मार्निंग फ्रेंड्स!मेरे नाम से न आपको कुछ लेना देना है न मुझे.क्यों कि हमें अलग करने वाली बातों में नाम भी एक है.
"मैं एक पर्यावरणविद हूं ,प्रकृति से प्रेम करता हूं.मतलब,जंगल,समंदर,आकाश,जानवर,आप,मैं, सब मुझे प्यारे हैं.लेकिन इन सबका विनाश करने की दिशा में मानव अग्रसर हो रहा है.इसलिए अब मैं जो कर रहा हूं वह अनिवार्य है,इसे आप समझ लें.
"वैसे मैं जो करने जा रहा हूं,वह इस धरती पर संख्या को ठीक करने का काम है.यानी, इस भूमि पर कितने कौव्वे हों,शेर हों,इन्सान हों,यह सब पहले से तय है.जब एक प्रजाति के पक्षियों की तादाद बढ जाती है तो वे सामूहिक आत्महत्या कर लेते हैं.उनमें जो ज़िम्मेदारी या विवेक है,वह इन्सान में नहीं है.इसीलिए उसकी ज़िंदगी इतने सम्घर्षों से,इतने असंतोष से भर गया है.जानवर बाल्यावस्था में जितने खुश रहते हैं,बडे होने के बाद भी उतना ही खुश रहते हैं.इन्सानों के विषय में यह पूरी तरह भिन्न है.बढना इतना दुर्भाग्य कैसे माना जाने लगा?क्यों ऐसा हो रहा है?
"विरोधों से भरे नियम ही इसका कारण है.जिन लोगों ने नियम बनाए,उन्हीं को उनका उल्लंघन करने में मज़ा आता है,यह उससे भी बडा विषाद है.इसी क्रम में श्रम के प्रतीक रूप में पैसा नामक ज़हरीले पदार्थ की भी सृष्टि करनी पडी.मानव के प्रस्थान में यह एक अत्यंत विनाशकारी कदम रहा.
"पैसा ऐसा भयंकर ज़हर है कि इन्सान के सहज स्वभाव, आनंद,सृजन शक्ति,सबको मटियामेट कर देता है.संसार की ऐसी अधोगति हो गई है कि पैसा न कमानेवाला हरेक क्षण व्यर्थ समझा जाने लगा.यह तकनीकी युग तो उस सोच की पराकाष्ठा है.इन्सानों की संख्या ठीक करने से बाकी सब अपने आप ठीक हो जाएगा.
"पर ज़रूरी नहीं कि यह आपरेशन सफल ही हो.क्यों कि सब ज़रूरी जांच मैं नहीं कर पाया.वजह,यह इन्सानों की मौत पर किया जानेवाला प्रयोग है!ज़्यादातर यह मेरी कल्पनाशक्ति पर ही आधारित है.अगर मैं असफल हो जाऊं,तो भी, अगर किसीको लगे कि मेरे विचार सही हैं,तो इस प्रयोग को आगे ले जाएं...इस पृथ्वी को बचाएं...
"क्यों कि जैसे ही यह आपरेशन पूरा हो जाएगा,इस प्रयोगशाला के साथ मैं भी तहसनहस हो जाऊंगा.मैं जिस नये संसार की सृष्टि करनेवाला हूं उसमें मैं भी न रहूं,इसके लिए मैंने खुद को तैयार करने की ज़रूरत समझी थी..."
इतने में दूर रखे मास्टर कंप्यूटर में से अलर्ट आने लगे.योगी उसके पास जाकर कमांड देने लगा.बीच बीच में मग में से काफी भी पीने लगा.
’सेवियर’,ये बडे अक्षर परदे पर प्रकट हुए.
योगी ने ज़ोर से सांस ली और मग मेज़ पर रख दिया.उसने जो वाइरस तैयार की,उसका नाम रखा सेवियर.जिस दिन वह वाइरस बनी,योगी को नहीं मालूम हुआ कि उससे वह खुश हो या दुखी.
सेवियर सेलफोन के तरंगों के साथ कहीं भी जा सकती थी.फोन उठाते ही उधर के आदमी के साथ आधे किलोमीटर के घेरे के अंदर जो भी होगा,सर्वर ब्रेकडाउन होने से,पूरा का पूरा पलभर में नष्ट हो जाएगा.उसके बाद कुछ ही पलों में वाइरस भी अपनी शक्ति खो देगा ताकि बाकियों का कोई नुकसान न हो.
समूचे संसार से सेलफोन नंबर इकट्ठे करने में उसका पेशा उसके काम आया.संसार के कोने कोने में यह आपरेशन चलाया जाएगा.उपग्रह केंद्रों में,परमाणु केंद्रों में,एंटी बयाटिक्स,गैस बेसिन्स जैसी संस्थाओं में मुख्य कार्यों पर लगे वैज्ञानिकों को,सामाजिक कार्यकर्ताओं को,इस आपरेशन से योगी ने अलग रखा ताकि उनकी मृत्यु न हो.उन वाइरसों को हटाने,बेकार करने और नए समाज का निर्माण करने केलिए उनका जीवित रहना ज़रूरी था.
वैसे योगी ने इस वाइरस को दस साल पहले बनाया था.तब सारा संसार दो देशों में विभक्त होकर तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में लगा था.संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी जवाब दे दिया था.
हम ना रहें तो कोई बात नहीं,पर दूसरे को मिटाकर ही रहेंगे,यही दुनिया की सोच हो गई.
इस युद्ध से किसी प्रकार जुडे न रहने वाले करोडों लोग विरोध कर बैठे."आप कौन होते हैं युद्ध करनेवाले?अगर इतना ही शौक है तो द्वन्द्व युद्ध करो!’यही सोचकर जब सेना भी बगावत कर बैठी ,तब जाकर चर्बी चढे सांड जैसे नेता लोगों ने घुटने टेक दिए.
युद्ध रुक जाने से योगी भी रुक गया.
पर वह खुशी ज़्यादा दिन नहीं टिकी.चांद पर कालोनी बनाने की कोशिशें जब ज़ोर पकडने लगीं,तब दोबारा योगी ने सेवियर को याद किया.
इन्सान और कितने ग्रहों में विनाश की सृष्टि करेगा?इस अन्याय को रोकना पडेगा!इसके विकृत प्यास पर चेक लगाना ज़रूरी है.
क्या यह सचमुच आगे बढना ही है?पीछे जब इतनी भूख और दुःख है...इन्सान को देने केलिए गालियां भी नहीं बची!
कई दिन सोचने के बाद उस रोज़ दोपहर को वह एक पक्का निश्चय कर सका.सेवियर का प्रयोग करना ही होगा!
सेवियर मशीन गरम होने लगा.योगी ने उसको छुआ...गर्मी नापी और हाथ की घडी की ओर देखा.दोपहर दो बजे वाइरस प्रक्रिया शुरू हुई.उस पूरी प्रक्रिया को खतम होने में छः घंटे और पैंतीस सेकंड लगेंगे.
योगी रिवाल्विंग कुर्सी पर बैठकर अपना वीडियो देखने लगा.फिर उसने संदेश देना शुरू किया...
"इन्सान अगर चांद पर कालोनियां बनाने लगेगा तो जानते हैं क्या होगा?मैं समाज शास्त्री नहीं हूं जीवशास्त्र का वैज्ञानिक हूं.फिर भी कल्पना कर सकता हूं.होगा यह कि...पैसेवाले सब चांद पर प्रवास कर जाएंगे.वैसे जाएंगे तो कोई बात नहीं,इस धरती को एक खंडहर बनाकर जाएंगे.आगे चलकर यह धरती एक प्रयोगशाला का रूप ले लेगी तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए.यहां जो लोग रह जाते हैं,उन्हें इन्सान की पहचान भी नहीं मिलेगी.यह दौर वैसे अभी शुरू हो चुका है.
"और एक बात...
अपार जलराशियों से,अनन्य वनों से,अद्भुत वातावरण से शोभायमान इस धरती को नष्टभ्रष्ट करनेवाले केलिए चांद को मिटाने में कितना वक्त लगेगा?सच पूछिए तो जब यह इस धरती को पूर्व रूप देने का काम करेगा तभी दूसरे ग्रहों पर उडकर जाने की योग्यता पा सकेगा.
"यह इस प्रकार अति उत्साह से हत्या और आत्महत्या करने लगेगा तो मैं चुप नहीं रहूंगा.एक पर्यावरणविद होने के नाते..."
इतने में ज़ोर से अलार्म बजी.योगी चौंक उठा.घडी की ओर देखा.सबकुछ समय के मुताबिक हो रहा था,एक सेकंड का भी फर्क नहीं आया.अपने प्रयोग की सफलता के ही आसार दिखाई दे रहे थे उसे.उसका दिल और ज़ोर से धडकने लगा!
उसने वीडियो फाइल बंद किया और वहां से उठा.हेल्मेट जैसी चीज़ पहनकर प्रोसेस्सिंग मशीन के लीवर को लाल बत्ती के जलने तक ऊपर नीचे पंप किया.ऐसा करते वक्त उसके हाथों में हल्का सा सिहरन उठ रहा था.उसने सोचा, मेरे हाथ की एक एक हरकत मनुष्य की नस्ल को मौत की तरफ एक एक कदम ले जाएगी!
लाल बत्ती जल उठी!प्रयोगशाला में लाल रोशनी भर गई.योगी को लगा कि वह रोशनी ज़बर्दस्ती अंदर घुस आनेवाली शाम की निस्तेज रोशनी जैसी है.
’सेवियर रेडी’,ये अक्षर जलते बुझते दिखाई देने लगे.’लोड काल्स’,टाइप करके कुर्सी पर वह आराम से बैठ गया और आंखें मूंद लीं.अपने मन को काबू में करने का वह भरसक कोशिश कर रहा था, फिर भी वह उद्वेलित होने लगा.
सिस्टम में जो बाक्स था, उसमें लाल रंग भरने लगा.यानी, लाखों फोन नंबर डायलिंग के लिए तैयार होने लगे हैं.उनमें योगी,उसकी पत्नी और बेटे के नंबर भी हैं.अगर कोई फोन नहीं उठाए या फोन एंगेज रहे तो नंबर एक घंटे तक रीडायल होते रहेंगे.
"रेडी टु काल!"एक मोटी आवाज़ मानिटर में से आई और योगी ने चौंककर आंखें खोल दीं.मानिटर पर लाल अक्षरों में’काल’लिखा था.
एंटर दबाने से सैकडों करोडों इन्सान कुछ ही पलों में इस दुनिया से उठ जाएंगे.यानी कई शरीरों में मनुष्य जीना छोड देगा.बस! मनुष्य रहेगा...प्राचीन मनुष्य!मैं सिर्फ उसे एडिट कर रहा हूं! योगी बुदबुदाया.
एंटर बटन पर उसकी पतली उंगली गई.अंगूठा कांप रहा था.उसके मन में आखिरी बार बिना चेहरेवाले करोडों इन्सान दिखाई दिए...बस एक पल के लिए!
लंबी सांस भरकर उसने ज़ोर से एंटर का बटन दबाया.
अगले पल मेज़ पर रखा सेलफोन बज उठा.योगी ने उसे उठाया.रिसीविंग बटन दबाते हुए वह बेचैन और परेशान हो गया.अपना प्रयोग सफल होगा या नहीं इस बात की चिंता थी उसे...एक कलाकार की बेचैनी...उसने हेलो कहा...
हाइ वोल्टेज बिजली का झटका लगने से जैसे कांप जाते हैं,वैसे ही योगी का समस्त शरीर कांप उठा.उस स्थिति में भी अपने प्रयोग की कामयाबी से योगी के होंठों पर खुशी खिल गई...बस आधे पल के लिए...तुरंत वह कुर्सी से उछलकर नीचे अचेत होकर गिर पडा.
एक घंटे बाद वह प्रयोगशाला धमाके के साथ फट पडी.इस तरह दुनिया को बचाने केलिए दुनिया छोड गया नोबेल पुरस्कार को अस्वीकार करनेवाला प्रसिद्ध पर्यावरणविद,योगी!
"वह जो भी था,मगर सच्चा प्रेमी था...इस दुनिया से उसे सच्चा प्यार था."ज़मीन की ओर देखते हुए कहा नीता ने.फिर ऊपर आसमान को देखकर सोचा,’नए अक्षर उडने को हैं!’
नर्स ने एक साइकिल वहीं छोड दी और नीता को अपनी साइकिल के बार पर बिठा लिया.नीता बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी."चलो तुम्हें एक अद्भुत दृश्य दिखाती हूं!"नर्स साइकिल चलाते हुए बोली.नीता चारों ओर नज़र दौडाकर गौर से देखने लगी...कहीं कोई इन्सान नहीं दिखाई दे रहा था...बस कुछ कुत्ते और गाएं थीं.
एक बडे किले के आगे नर्स ने साइकिल रोकी.उस किले की दीवार का ओर छोर नहीं था,दिगंतों तक दीवार चली जा रही थी.
"यह हमारी कालोनी का बार्डर है," नर्स ने कहा.दोनों दीवार के पास जाकर उसमें लगी जालीदार खिडकी से अंदर झांका.दीवार के उस पार एक खंदक था.उसके आगे टूटे फूटे मकानों के बीच एक जंगल शुरू हो रहा था.शेर और हिरन एक ही खंदक से पानी पी रहे थे.
नीता ने हैरान होकर नर्स की ओर देखा.
"लगता है उस शेर ने अभी अभी पेट भरके खा लिया,बस! हिरन जानते हैं कि कब उन्हें शेर से खतरा है.शेर ज़्यादातर हिरन जैसा ही होता है.सिर्फ इन्सान है जो चौबीसों घंटे शेर बना रहता है!"
नीता ने नर्स की बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.
"क्या यह चिडिया घर है?"नीता ने पूछा.नर्स नीता के बाल बिखेरते हुए हंसी और बोली,"नहीं बच्चे...यह जंगल है.हमारी कालोनी के चारों ओर का जंगल.सिर्फ इस तरफ की दीवार के यह इतने पास है.बाकी तीनों तरफ से जाना हो तो सैकडों किलोमीटर फार्म हाउज़ेस को पार करने के बाद ही जंगल तक पहुंचा जा सकता है.जानवरों को देखने केलिए इस तरफ इस दीवार को यहां खडा किया है.इस खंदक को खोदने में और दीवार बनाने में मेरा भी पसीना मिला हुआ है,जानती हो?बीस हज़ार लोगों ने काम किया तो एक साल में इसे बना पाए!"
नीता शेर और हिरनों को देखने लगी.
"अब इन्सान और जानवर अपनी ज़िंदगी अलग अलग रहकर जीते हैं .एक दूसरे के मामले में टांग नहीं अडा सकते.प्राकृतिक चुनाव को इन्सान नें ही खराब करके रख दिया था.फिर एक इन्सान ने ही...सिर्फ एक इन्सान ने...उसे ठीक कर दिया!"
"तो क्या संसार में हर जगह ऐसी ही कालोनियां हैं?"
"पता नहीं,योगी ने जो वीडियो में बताया ,उसके आधार पर सब यही मानते हैं,पर इन कालोनियों में किसी का किसीसे भी संबंध नहीं हैं.योगी के प्रयोग की वजह से सारे सेल टावर खराब हो गए.शायद योगी खुद नहीं जानता था इस तरह कुछ होगा.टीवी चेनेल काम नहीं करते.शायद सेटिलाइट्स को इनेक्टिव कर दिया हो?असल में कोई भी इस तरह का संबंध रखना ही नहीं चाहता.संबंध रखना हो तो जंगलों और समंदरों में रास्ते बनाने होंगे.मतलब,उन्हें चोट पहुंचाना होगा."
"जंगलों,रेगिस्तानों और समंदरों को अबतक जो पार करते रहे वह काफी है.अब वे सब हमें रोमांच नहीं पहुंचाते.किसी को ये काम करने की रुचि या ज़रूरत नहीं रही.यह जो ज़िंदगी हम जी रहे हैं,वही अच्छी है,है ना?"रिवाल्विंग कुर्सी पर गोल गोल घूमते हुए नर्स ने कहा.
नीता को नर्स की बत ठीक लगी और वे शब्द उसके मन में बहुत देर तक गूंजते रहे.
नर्स ने उठकर डीवीडी चालू किया.टीवी के परदे पर योगी प्रकट हुआ.दाढी करीने से ट्रिम किए था वह.उसकी आंखों में चमक के साथ हल्की सी नमी भी दिखाई दी.उसके चेहरे पर प्यार का भाव था.उसकी आवाज़ साफ थी और कानों को भली लग रही थी.सुननेवाले को एक दम आकर्षित कर लेनेवाला व्यक्तित्व था उसका.
..."अब आप जिस ज़मीन पर चल फिर रहे हैं.इसका एक एक इंच कई लोगों के खाली करके चले जाने से ही आपको मिला है.यह आप अच्छी तरह याद रख लें..."
योगी का भाषण चल ही रहा था,इतने में नर्स ने गलती से रिमोट का बटन दबा दिया.परदे पर से योगी गायब हो गया और लोकल फिज़िकल कनेक्टिविटी से काम करनेवाला दूसरा चेनल चल पडा.
उसमें खबरें पढी जा रही थीं...
’इस नई दुनिया में सबसे पहला अपराध...अपने प्रेम को ठुकरानेवाली चौदह साल की लडकी का गला ब्लेड से काटनेवाला युवक...’
नीता ने लंबी सांस छोडकर सोचा...अभी इस दुनिया में बहुत कुछ बदलने की ज़रूरत है!
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