Friday, April 22, 2011


मृत्यु का दृश्य
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इतवार का दिन,दोपहर का समय था.हवा जैसे थम गई थी,जैसे उसे लाकर में बंद करके किसीने रख दिया हो! बडी उमस थी.

सायन्ना खाना खा रहा था.उसने अपनी बीवी की ओर देखा और कहा,’ज़रा पंखा तो चला देना!" बीवी ने कनखियों से उसकी ओर देखकर कहा,"पिछले महीने करंट बिल चार सौ का अया था,भूल गए?"

"अरे कोई बात नहीं.बडी गर्मी है.खाने का मन नहीं कर रहा है.ठोडी देर के लिए चला दे."वह बीवी का स्वभाव जानता था.पैसे का बडा मोह है उसे.एक भी पैसा खर्च नहीं करने देती...जैसॆ अपनी जान निकालकर देना पड रहा हो,ऐसे बर्ताव करती है.वह कितना भी हाडतोड मेहनत करे तो भी खुश नहीं होती,ऊपर से कहती है,"बस इसी केलिए दिन रात खटते रहते हो?"

उसने नाक भौंह सिकोडते हुए पंखा चला दिया.पंखे की हवा आने लगी तो सायन्ना को राहत मिली...जैसे बदन में जान वापस आ गई हो.

"ज़रा सा छाछ तो डाल दे,"उसने बीवी से कहा. पनीली छाछ डाल दी बीवी ने.

"यह क्या? इसमे छाछ तो है ही नहीं.पानी ही पानी है!"

"हां हां ! तेरी कमाई में यह नहीं तो क्या दही और मलाई वाली लस्सी मिलेगी?" बस,सायन्ना चुपचाप खाने लगा.इतने में बाहर से किसी की आवाज़ सुनाई दी.उसनॆ थाली उठाकर रही सही छाछ पी और बाहर भागा.वहां अरुणोदया अपार्टमेंट्स का वाचमैन खडा था.बोला,"बिजली गई है.साब ने तुझे फौरन आने को कहा है."

सायन्ना के घर के आसपास दो तीन अपार्टमेंट्स हैं.वह पैसा ज़्यादा नहीं मांगता और काम मन लगाकर करता है.इसलिए बिजली का काम हो तो सायन्ना को ही बुलाते हैं लोग.

कमीज़ पहनकर,अपना सामान का थैला लेकर घर से निकल पडा वह.

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अरुणोदया अपार्टमेंट्स के सेक्रटरी बहुत बेचैन था.तीन साल पहले उसने वालंटरी रिटाइरमेंट ले लिया था.दोनों बच्चे अमेरिका में सेटल हो गए.उसने सोचा रिटाइर होने के बाद मिलने वाले पैसों पर जो ब्याज मिलेगा उससे ज़िंदगी आराम से गुज़र जाएगी.पर सरकार ने बैंक के दिपाजिटों पर ब्याज आधा करके रख दिया तो उसके सारे सपने अधूरे रह गए.

इसीलिए वेलफेयर चुनाव में खडे होकर जीत हासिल की और सॆक्रटरी बन गया.हाथ में काम भी है और पैसा भी आता है.कुल साठ फ्लेट हैं.मेइंटेनेंस के नाम पर हर फ्लेट से हर महीने पांच सौ रुपए वसूल किए जाते हैं.यानी महीने में तीस हज़ार.झूटे खर्च खाते में लिखना, किए गए खर्च कुछ बढाकर लिखना,ऐसे काम तो वह खूब जानता है.

एक घंटे पहले ट्रान्सफार्मर में से ज़ोर की आवाज़ हुई और लपटें निकलने लगीं.बिजली गुल हो गई.सॆक्रटरी होने के नाते इसे ठीक कराने की ज़िम्मेदारी उसकी थी... सिरदर्द का काम !पर सचमुच बडी उमस थी.शायद बारिश होनेवाली है.पसीने से बदन तरबतर हो रहा था.वैसे भी कांक्रीट जंगल जैसे बडे बडे फ्लेट.कहीं पेड पौधों का नाम ही नहीं...पत्थर और सीमेंट के सिवा हरियाली तो है ही नहीं!

सायन्ना का इंतज़ार करते हुए वह और भी खीजने लगा.उसे देखते ही पूछा,"इतनी देर क्यूं कर दी ?"

"खाना खा रहा था साब!"कहकर एक ही पल में वह फटाफट त्रान्सफार्मर पर चढ गया.

"ज़रा जल्दी कर,"कहकर सॆक्रेटरी अपने फ्लेट मे घुस गया.मन ही मन खुश हो रहा था कि सायन्ना को दो सौ देकर खाते में एक हज़ार लिख दूंगा.

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श्रीनिवास को बहुत झुंझुलाहट हो रही थी.वह एक टीवी चानल में केमेरामेन था.वह एक ऐसा डाक्युमेंटरी बनाना चाहता था जो पुरस्कार प्राप्त करने के स्तर का हो.वह सोच रहा था कि ऐसा कौन सा विषय होगा जो इस स्तर का होगा.

बाल कर्मचारी,कूडे में से कागज़ बीनत्गरीब,बचपन में ही वेश्यावृत्ति में लगाई गई अभागिन लडकियां,अरब शेखों के हाथों बिकनेवाली अमीनाओं की कहानियां...ये सब पहले ही बन चुके थे.नया विषय चुनना होगा.बिलकुल नया और अनोखा हो.नेशनल गॆयोग्रफी चानल में हाल ही में उसने एक अद्भुत कार्यक्रम देखा था.एक हिरण को बाघ के मारने का दृश्य.बाघ हिरण का पीछा करता है,हिरण जान बचाने केलिए भागता है.बाघ मारना चाहता है और हिरण बचना चाहता है.अंत में बाघ हिरण को पकड ही लेता है.तब केमेरामेन ने उस हिरण की आंखों में माउत के खौफ को बहुत ही स्पष्ट रूप से केमेरे में बांधा था.ऐसा ही कोई विलक्षण च्हॆज़ बनाना चाहता था श्रीनिवास.

सिग्रेट पर सिग्रेट फूंकते हुए सोच ही रहा था कि इतने में ज़ोर की अवाज़ आई.चौंककर उसने खिडकी से बाहर झांका.फ्लेट के सामने बने ट्रान्स्फार्मर से धुआं निकल रहा था.बिजली भी चली गई थी.गर्मी से राहत पाने केलिए खिडकी के पाट पूरी तरह खोल दिए.अब उमस के कारण घबराहट होने लगी तो ठीक से सोच भी नहीं पा रहा था.

कुछ देर चहलकदमी की,लेटने की कोशिश की,लेटा नहीं गया,पता नहीं यह कब तक ठीक कराया जायेगा!उसने तीसरी मंज़िल में रहनेवाले सेक्रेटरी को फोन लगाया.उधर से झिडकी सुनाई दी,"यह चौबीसवां फोन है...!"

एक घंटा बीत गया.

उसने खिडकी से बाहार एक बार और नज़र घुमाई.सायान्ना बडी फुर्ती से ट्रेन्सफामर पर चढ रहा था.वह समझ नहीं सका कि अगर ट्रेन्सफार्मर जल गया तो ऊपर चढकर सायन्ना क्या करेगा.छोटा मोटा रिपेयर तो नहीं कि पैसों के लिए जान जोखिम में डाल दे...जीवन संघर्ष...इस शीर्षक से डाक्युमेंटरी बनाया जा सकता है!यह बात दिमाग में आते ही उसने हेंडी केम चला दिया और सायन्ना पर ज़ूम कर दिया.

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सायन्न दसवीं फेल था.फिर उसने बिजली का काम सीख लिया.अब उसे दस साल का तजुर्बा है.वह एलेक्ट्रिकल इंजीनियर तो नहीं है फिर भी फौरन गडबड समझकर पल में उसे ठीक कर देता है.कहां छूने से जान को खतरा है,यह वह अच्छी तरह जानता था.

उसके हाथ चुस्ती से चलने लगे.वह जल्द से जल्द नुक्स को पकडकर उसे ठीक कर देना चाहता था.किसी दूसरी जगह से भी बुलावा अया था.यह काम खतम करके वहां जाएगा तो पैसे ज़्यादा मिलेंगे,यही सोच रहा था.उस समय अचानक उसे अपनी बीवी याद आ गई.उसकी कैंची जैसी चलती ज़बान,पैसों का मोह,घायल कर देनेवाली बातें,हज़ार वोळ्त के झटके की तरह सताने लगे.

ध्यान बटने से हाथ फिसल गया,ऐसी जगह पर पडा जहां पदना नहीं चाहिए था.सायन्ना चीखकर उछल पडा.मानो हाथ को किसीने धारदार चाकू से ज़ोर से कात दिया हो,ऐसा दर्द उठा.ट्रान्सफार्मर पर बने जंगले पर धडाम से मुंह के बल गिर गया.

चीख सुनते ही श्रीनिवास सतर्क हो गया.इतना ज़ोर का झटका लगा...अब यह बच नहीं पाएगा.यह सोचकर उसने केमेरा सायन्ना पर ज़ूम किया.वह अभी सांस ले रहा था.मृत्यु वेदना से छटपटा रहा था...मौत के मुंह में जा रहा था.रह रहकर उसका शरीर झटके खा रहा था.इसका शीर्षक, मौत का दृश्य रखा जा सकता है,यह सोच मन में आते ही वह बडे ध्यान से दृश्य का चित्रण करने लग गया.

उस अपार्टमेंट मे रहने वाले लोग बाहर आकर सायन्ना को देखते खडे रहे.सेक्रेटरी भागता हांफता आ गया.कटी पतंग की तरह ट्रेन्शफार्मर के जंगले पर निढाल पडे सायन्ना को देखकर उसकी बी पी बढ गई.वह परेशान होने लगा कि पैसा बचाने के चक्कर में यह कैसी झंझट सिर पर ले ली !उसने गौर से देखा.सायन्ना के शरीर में हरकत बिलकुल नहीं हो रही थी.यह कहीं पुलिस केस न बन जाए यह सोच मन में आते ही वह सिहर गया.इतने में किसीने कहा,"बिजली विभाग को फोन लगाइए.वे जबतक पवर सप्लाइ बंद नहीं करेंगे इसे नीचे नहीं उतारा जा सकता.बस सेक्रेटरी फोन करने को दौड पडा.

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बिजली के दफ्तर में सांबमूर्ति अखबार के पन्ने पलटता बैठा था.वह भी नाखुश था.नाम के वास्ते बिजली का दफ्तर है,पर ऊपर पंखा न जाने कितने पुराने युग का है!हवा कम और शोर ज़्यादा देती है.कभी भी टूटकर गिर सकता है,यह डर बना रहता है.बडी उमस थी.

और दो घंटों की बात है,फिर ड्यूटी खतम हो जाएगी.मुझे रिलीव करने जो आता है वह बदमाश तो शराबी है.पता नहीं समय पर आएगा या नशे में किसी सडक किनारे पडा होगा!वैसे भी आज खास दिन है.बीवी बच्चों को लेकार गांव गई है.शाम को श्यामला को बुलाया है.वह ताला देखकर कहीं लौट न जाए.उसे चमेली के फूल बहुत पसंद हैं.रास्ते में खरीद लूंगा.साथ में क्वार्टर बोतल व्हिस्की और दो चिकेन बिरियानी के पेकेट भी!

फोन बज उठा.उधर से किसीने कहा,"ट्रान्सफार्मर पर चढकर एक लडका बिजली का झटका लगने सेगिर पडा."यह सुनते ही सांबमूर्ति तनकर सीधा बैठ गया.पूछा,"कहां?"

जवाब आया,"वहीं ट्रान्सफार्मर पर ही..."

"मैं पूछ रहा हूं आप कहां से बोल रहे हैं? हादसा कहां हुआ?"

उधर से पता बताया गया.

तुरंत सांबमूर्ति को तसल्ली हो गई."प्राइवेट आदमी को ट्रान्सफार्मर पर नहीं चढाना चाहिए,क्या अपको मालूम नहीं?"उसने कहा.

"वह सब बाद में देखेंगे.हमें यह भी मालूम नहीं कि लडका ज़िंदा है या मर गया...उसे नीचे उतारना है.आप फौरन इस एरिया का कनेक्षन काट दो!"

"मैंने कंप्लेंट लिख लिया है.आपका नंबर है, छत्तीस.सब कर्मचारी कंप्लेंट ठीक करने बाहर गए हैं.आते ही भेज दूंगा."

"मैं ट्रान्सफार्मर की मरम्मत की बात नहीं कर रहा हूं.इस लाइन की बिजली काट देंगे तो हम उस लडके को उतार लेंगे."

"मैं भी यही कह रहा हूं जनाब! कंफ्लेंट लिख लिया है.जब भी बन पडेगा भेज दूंगा!"

"अरे! आप हालत की नज़ाकत को समझो भाई!यहां आदमी मौत से झूझ रहा है और..."साम्बमूर्ति ने फोन काट दिया.सरकारी नौकर जैसे सबका नौकर हो गया.ऐसे चिल्ला रहा है जैसे मेरा बास है.बुलाते ही दौडकर जाना होगा?वह झुंझला उठा.

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वाचमेन ने खबर दी तो सायन्ना की बीवी रोती कलपती आ गई.सेक्रेटरी को पहले ही डर था कि कहीं यह पुलिस का केस न बन जाए.अब यह औरत इतना शोर मचा रही थी तो उसका दिल ज़ोरों से धडकने लगा.

ऒते रोते उसने सेक्रेटरी को देखा तो कहने लगी,"आपने बुलाया तो चला आया साब!वह नहीं जानता था कि यह मौत का बुलावा है!"

यह सुनते ही सेक्रेटरी का दिल धक से हो गया.और कुछ देर इसी तरह बोलने दिया तो साफ कहेगी कि तुम्हारी वजह से ही मरा है!उसने मन ही मन हिसाब लगाया.पुलिस केस होगा तो हज़ारों रुपए खर्च करनॆ पडेंगे.इससे अच्छा है कि पैसे का लालच देकर इसका मुंह बंद किया जाए.यह सस्ता सौदा होगा.हर एक घर से पांच सौ मिल जाए तो भी तीस हज़ार रुपए हो जाएंगे.और थाने के चक्कर काटने से भी बच सकते हैं.पति मर गया...अकेली औरत...बेसहार बेवा...ऐसे कहने पर हर कोई पैसा दे देगा.

ऐसा सोचते ही वह उस औरत के पास गया और तसल्ली देते हुए कहा,"तुम दुखी मत हो.सायन्ना बडा अच्छा है.हमारे कांप्लेक्स में हर कोई उसे जानता है और मानता भी है.हम सब मिलकर पच्चीस तीस हज़ार तुम्हें देंगे.उससे कुछ काम धंधा करके गुज़ारा कर लेना."

यह सुनते ही एक पल केलिए उसकी आंखों में आशा की चमक कौंध गई.पर उसे छुपाते हुए फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी,"हाय मैं क्या करूं...मेरा सुहाग चीन लिया तूने हे भगवान...दया नहीं आयी तुझे...!"

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"धत् तेरे की...इस एस आई साले को मुफत के केस ही मिलते क्या?" थाने से बाह्र आते ही पुलिस सिपाही से यह कहकर दूसरी ओर मुंह करके थूक दिया हेड कानिस्टेबल ने. सिपाही ने सिर हिलाकर हां में हां मिलाया.हेड ने फिर कहा,"वह कोई गधा ट्रान्सफार्मर पर चढकर मरा तो हमारी शामत आ गई!उसे नीचे उतारना,लाश का पंचनामा कराना,असे उसके परिवारवालों के सुपुर्द करना, ये सारे काम करने तक हमारी ज़िंदगी कुत्ते की ज़िंदगी ही रहेगी!"

"मैंने तो एस आई के घर बरतन भी मांजे,मेडम केलिए सब्ज़ी खरीद लाया...इसके बावजूद वह हमसे खुश क्यों नहीं है,समझ में नहीं आता."

"अरे,समझा कर! उसकी जात और हमारी जात अलग है.यही असली वजह है.मुझे गुस्सा आ गया ना तो इसपर डी जी पी को लिखूंगा...इसके खिलाफ केस कर दूंगा हां! तब देखना इसे नक्सलाइट एरिया में भेज दिया जाएगा!"

बत करते करते दोनों अरुणोदया अपार्टमेंट्स पहुंच गए.पहलॆ सोचा था कि यह फायदा का सौदा नहीं था,पर सेक्रेटरी के बर्ताव को और उसके डरे डरे चेहरे को देखते ही वह समझ गया कि कहां ज़ोर देने से पैसे मिलेंगे.उसने सारा मामला सेक्रेटरी से उगलवाया.केस निपटाने के लिए कितना खर्च होगा यह बता दिया.आधे घंटे तक दाम पर बहस करने के बाद कुछ तय हुआ तब देखा सायन्ना की ओर ,जो चमगादड की तरह लयका था.

"अब पांच बज चुका है.यह तो बहुत देर पहले मरा था न?अबतक लाश को नीचे क्यों नहीं उतारा?क्या कर रहे थे आप?"वह गरजा.

"उसे उतारने के लिए ऊपर चढना था.पवर बंद नहीं किया गया तो कैसे चढते?आप ही कुछ करो ना?" गुस्से को पीकर सेक्रेटरी ने कहा.

"मुझे क्या पता? क्या मैं कोई एलेक्ट्रीषियन हूं?
फिर एक बार फोन करो.कहो एस आई साहब का हुकम है.नहीं मानता तो ऒप्पर बैठे अफ्सर को शिकायत करेंगे!"

छ्ह बजे जीप में बिजली विभाग से एक एई और दो कर्मचारी आए.सेक्रेटरी से कुछ देर बात करके इंजीनियर ने ऊपर सायन्ना की ओर देखा और कहा,"इतना बडा झटका लगने के बाद बचना मुश्किल है.वह तो मर गया होगा."

"अरे क्या हम नहीं जानते वह मर गया है?इसके लिए तेरे सर्टिफिकेट की ज़रूरत है क्या?"मन ही मन सेक्रेटरी बुदबुदाया और कहा,"आप बिजली बंद करवाओ तो हम लाश को उतारें!"

"नहीं पहले मेरे बास को रिपोर्ट करना पडॆगा,"यह कहकर तीनों वापस जीप में बैठकर चले गए.

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श्रीनिवास बहुत खुश था,जैसे कोई बहुत बडा काम कर रहा हो.रह रहकर सायन्ना के शरीर में होनेवाली हरकत देख वह फूला नहीं समा रहा था.मृत्यु के पलों को इस तरह क्लोज़प में बांधना ही एक रिकार्ड है,इस बात से उसका उत्साह और बढने लगा.

वाचमेन की बीवी, ऐलम्मा,को यह सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था.उसकी उम्र चालीस के करीब होगी.छरहरा बदन पर मेहनत करने की वजह से चुस्त बहुत थी.गांव में बिजली के तारों से उलझने से जलकर मरनेवाले कौवों को उसने एक दो बार देखा था.सायन्ना को देखकर वे कौवे याद आए तो उसका मन भर आया.उसे उतारने की कोई कोशिश नहीं कर रहा है,इस बात से वह हैरान थी.उसने तय किया कि अब किसी से उम्मॆद न करके खुद कुछ करना चाहिए.वह जाकर सीढी ले आई.उसे ट्रान्सफार्मर से लगाया और साडी को दोनों पैरों के बीच से बांधकर चधने को ताइयार हो गई.

"ऎ...क्या करती है?...मरेगी तू...बिजली चालू है..."वाचमेन नीचे से चिल्लाया.

"कुछ नहीं होगा...नहीं मरूंगी मैं...तू चुप रह!"

वह ऊपर चढ गई और ट्रान्सफार्मर को छे बिना खडी हो गई.एक हाथ की दूरी पर पडा था सायन्ना का शरीर.

"छूना मत... झटका लग जाएगा और तू भी मरेगी..."वाचमेन फिर चिल्लाया. इस बार उसे भी डर लगा.

नीचे उतर आई और घर से लकडी का लंबा टुकडा ले आई.वह दो फुट लंबा था.उसने उससे सायन्ना के शरीर को धकेलने की कोशिश की.धकॆलना आसान था,पर नीचे गिरने से कहीं सर फट गया तो!"नीचे देखते हुए कहा,"एक गद्दी डाल दो नीचे."

"अरे मरे हुए को चोट का डर क्या? नीचे फेंक दो!"वाचमेन ने कहा.

उधर श्रीनिवास बडी चुस्ती से यह सब रिकार्ड कर रहा था.

सेक्रेटरी ने अपने घर से गद्दी मंगवाई.नीचे चटाई डालकर उसपर गद्दी डाली और पुरानी चादर भी बिछाई.

ऐलम्मा ने पूरा ज़ोर लगाकर सायन्ना को नीचे की ओर धकेला.धम्म से वह गद्दी पर गिर पडा.

सब लोग उसकी ओर भागे.सायन्ना की बीवी फिर रोने लगी.

हेड ने सायन्ना की नाक के पास उंगली रखकर देखा.कुछ समझ नहीं आया तो छाती पर हाथ रखकर देखा और दो मिनट बाद चिल्लाया,"यह अभी ज़िंदा है!एंबुलेन्स को फोन करो..."

आधे घंटॆ बाद एंबुलेन्स आयी.जब सायन्ना को उसमे चढाया जा रहा था तो उसमे सांस बकी थी.अस्पताल पहुंचने से पहले,बीच रास्ते में वह मर गया.

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श्रीनिवास ने केमेरा बंद किया उर अलमारी में रख दिया.

सांबमूर्ति तीन पेग पीने के बाद श्यामला के साथ बिरियानी चखने में लगा था.

इस अचानक आए खर्च को किस तरह भरा जाए इसी सोच में डूबा था सेक्रेटरी.

क्रिया कर्म के खर्च तो देदिए,पर वह पच्चीस तीस हज़ार दॆगा या नहीं यही चिंता सायन्ना की बीवी को बेचैन कर रही थी.उस समय साथ कोई भी नहीं था जो गवाही दे सके,यह सोचते ही उसका दिल बैठने लगा.

"मैंने यह काम तीन घंटे पहले किया होता तो वह बच जाता..."ऐलम्मा को यही सोच खाए जा रही थी.वह अपराध बॊध से ग्रस्त हो गई...

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मूल तेलुगु कहानी : सलीम

अनुवाद : आर.शांता सुंदरी

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1 comment:

  1. यह कहानी आज की ज़िंदगी के कई पहलुओं को सामने ला सकी है.
    व्यवस्था की हृदयहीनता और मीडिया की असंवेदनशीलता पाठक को कई जगह विचलित करती है.
    एल्लम्मा आज के शहर में कहाँ मिलेगी!?

    सफल अनुवाद.

    और हाँ, 'सृजन का पल' का अनुवाद भी आप अपने ब्लॉग पर लगाने के लिए मेरी और से अधिकृत हैं.

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