Friday, May 6, 2011


ईश्वर की फिर मृत्यु हो गई
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मैंने प्यार किया था
एक सत्य शिव सौंदर्य को
तीन वसंतों के बाद वह मेरी पत्नी बनी-प्यार मर गया

सत्रह हेमंत और दस हज़ार सलीबें ढोकर
गढा था हिमालय एक हिमकण से मैंने
वह एक सूअर की औलाद के साथ भाग गई-प्यार मर  गया

तीस शिशिरों से अग्नि और अश्रु  मिलाकर  पिला रहा हूं दूध शब्द को
मेरा प्रिय पाठक शब्द की हत्या कर पब में या पर्स में छुप गया ,सेल में फंस गया-प्यार मर गया

पच्चीस ग्रीष्म ऋतुओं से रंगमंच के रणक्षेत्र में
करा रहा हूं खड्ग चालन
लाशों को सुंघा रहा हूं
कोमल मकरध्वज खिला रहा हूं अपने सहृदय दर्शक को
वह रंगमंच पर पेशाब करके
एक छोटी फिल्मी अभिनेत्री के साथ भाग गया-प्यार मर गया

चालीस शरदऋतुएं भट्टी में बैठकर मुखौटे पिघलाकर दोस्ती निभाई
उन्हें फिर से मुझे पहनाने की कोशिश की उन लोगों ने-प्यार मर गया

साठ बरसातें बेकार ज़िंदगी गुज़ार दी मैंने
हमेशा समूह में जीता रहा गलत किया मैंने
माफ कर दो भाई
कोई तो आओ भाई
एक हाथ का सहारा दो भाई
ऊपर उठाओ भाई
दिन ढल रहा है,अंधेरा घिर रहा है,रास्ता नहीं दिखेगा
श्मशान का फाटक बंद हो जाएगा-प्यार मर गया!

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मूल तेलुगु कविता : देंचनाल श्रीनिवास

अनुवाद : आर. शांता सुंदरी

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