Tuesday, May 24, 2011


गिद्ध
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"आज भी पानी नहीं आएगा.इन खेतों में फसल नहीं होगी!"तालाब के किनारे इमली के पेड पर बैठा तोता बोला.

"अरे, यह कैसी गलत भविष्यवाणी कर रहे हो भाई?रात देर तक मुन्नॊरु के किसान संघ की दीवार पर बैठा रहा.उन लोगों ने कहा था कि पौ फटने से पहले तालाब पानी से भर जाएगा.सुना है पसा भी लिया था इसके लिए!"पास ही बैठे मैना ने कहा.

"असली मामला तो वही है.इंजीनियर को मालूम हो गया कि गांव में एकड के हिसाब से पैसा वसूल किया गया था.एक बूंद पानी भी देने केलिए वह राज़ी नहीं है...अड गया है."

"लगता है बेचारा सतजुग का आदमी है.क्या पैसे वसूल करने की बात सुनकर उसे बुरा लगा?"

"बुरा तो मान गया वह, पर इस बात से नहीं बल्कि इसलिए कि उसका हिस्सा उसे क्यों नहीं मिला!"

"यह कैसा अत्याचारी है भाई? लोग बडी तकलीफ में हैं.कर्ज़ लेकर बुवाई कर चुके हैं और पानी के इंतज़ार में आंखें बिछाये बैठे हैं और यह महाशय अपने हिस्से की मांग कर रहा है? तो फिर उसका हिस्सा उसके मुंह पर क्यों नहीं दे मारा?

"कैसे देते?सूपरवैज़र का बेटा तो इंटर में फेल हो गया ना?"

"उसके फेल होने का इंजीनियर के हिस्से से क्या संबंध है?"मैना ने पूछा

"तू तो निरा बुद्धू है रे!इंटर फेल होने पर सूपरवैज़र ने बेटे को बहुत डांटा.और वह पैसा लेकर भाग गया!"

"तो वह पैसा किसानों से वसूल करना चाहता था वह?"

"अरे नहीं ,यार! वह तो किसानों का ही पैसा था. उसने कहा, इसमे से सबको हिस्सा मिलेगा.अगले दिन यह किस्सा हुआ.अब वह अपनी असहायता प्रकट कर रहा है.तब बेचारे किसान ही क्या कर सकते हैं बोलो?"

"करना क्या है? सब जाकर सूपरवैज़र के घर के सामने धरने पर बैठ जाएं.अखबार में इसकी खबर छपेगी तो अपनेआप बंदा मान जाएगा."

वहां बैठने से क्या होगा? यहां इसके घर के सामने बैठो तो पता चले.इसीलिए किसीको कुछ भी नहीं बताता है वह.कल परसों कहकर टालता जा रहा है.पानी केलिए रोज़ चक्कर काटने वाले सज्जन सुबह के गए रात को लौट रहे हैं...वह भी खाली हाथ.पर वे भी क्या कर सकते हैं बेचारों ने तो सबकुछ करके  देख लिया है !"

"अरे सबकुछ करनेवाले तो किसान थे!हमने कितना मना किया था कि तालाब में पानी नहीं हैफिर भी धान की फसल बो दी!बडों की बात मानकर ऐसी फसल डालते जिन्हें ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती.वैसे भी इन्हें कोई क्यों नहीं कहता कि रिश्वत मांगने वाले को जूता मारे?"

"सुना है लिंगरावु ने सलाह दी कि ऐसे लोगों से दूर ही रहो!तमाचा खाकर भी ऐसी सलाह् देता है कंबख्त!"

"तुम तो बडे भोले हो जी? वह ऐसी ही सलाह देगा ना?काशय्य का खेत नाले के नीचे ही है ना,इसीलिए ऐसी सलाह दी उसने."

"ऐसा क्यों?" अब भी मैना की समझ में बात नहीं आई.तब तोता मैना के बिल्कुल पास आकर बैठ गया और उसे बांहों में लेकर बोला,"ऐसा ही होता है जी!तालाब में पानी आए इससे पहले काशय्या के खेत में नाले का पानी पहुंच जाता है.पांच एकड में है फसल.पानी बहेगा तो खूब फसल होगी!"

"तो?"मैना ने भोलेपन से पूछा.

"लिंगरावु को तमाचा मरा था शंकर ने.शंकर और काशय्या ने मिलकर खेती की है.फसल अच्छी होगी तो दोनों मज़ा करेंगे.तो फिर लिंगरावु को गुस्सा आएगा ना?"

"अरे बद्माश!ऐसी सलाह देता है जिससे दूसरे का नुकसान हो?उसे तो कभी न कभी इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी.वेंकट को देखा कितना दुःखी है?उसका दुःख देखकर मुझे भी रोना आ गया!पर इतना क्यों रो रहा है वह?"

"नहीं तो क्या करेगा?उधार के पैसे लेकर सबसे पहले पांच एलड ज़मीन में बीज बो दिए."

"तो खेत सूख जाने से रो रहा है क्या बेचारा?"

"हां सूख तो गया है खेत.पर वह इसलिए नहीं रो रहा है.सब कह रहे हैं कि अब तालाब में पानी आने लगा है."

"पर यह तो खुशी की बात है ना? इसमे दुःखी होने की क्या ज़रूरत है?"

"उसका पूरा खेत सूख चुका है,तो ऐसे में दूसरों के खेतों में फसल क्यों उगेयही सोचकर दुःखी है!"

"कम्बख्त! सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे निकले!इसीलिए ये कभी सुखी नहीं रह सकते.सब मिलकर चलें तो कोई काम हो सकता है.है ना?"मैना ने प्यार से तोते की गर्दन को अपनी चोंच से सहलाते हुए कहा.

पौ फटने लगी है.काला आसमान सूरज के इर्दगिर्द अंगडाई लेते हुए उठने लगा.अंधेरे की ज़ुल्फों से झरते फूलों जैसे लग रहे थे पंछी.

"हां सच कहा तुमने.पर एक बात है,जितनी जल्दी बुराई फैलती है,भलाई नहीं फैलती.सबको मिलकर चलने के लिए कहने वाले नामपल्ली तो समझो गया काम से!"

"क्यों ,नामपल्ली को क्या हुआ?"

"अभी हुआ नहीं,होगा!सब लोग उसपर हमला करेंगे.खेत के पानी की बात उठाएंगे."

"मुझे नादान समझकर झूट बोल रहे हो ना?"मैना ने तोते से कहा,"तालाब में पानी लाने का वादा करनेवालों से नामपल्ली का कोई लेना देना नहीं? फिर उसपर क्यों हमला करेंगे?"

"लेना देना नहीं है इसीलिए.छः महीने पहले गांव में क्या हुआ था, याद है ना?"

"याद क्यों नहीं है?गांव में फाइनान्स खोलने की कोशिश का नामपल्ली ने विरोध किया और उसे रोक दिया था.पहले भी दो रुपये ब्याज्पर लोग उधार देते रहे.और जल्दी वापस भी नहीं मांगते थे.चुकाते वक्त पांच दस रुपये कम भर दिए तो भी चलता था.फाइनान्स खुलेगा तो कागज़ पत्र सबका खर्च बढेगा.ब्याज भी बढेगा.फिर उस ब्याज पर भी ब्याज वसूल करेंगे वे.तो उसे रोककर नामपल्ली ने अच्छा ही किया..."

"हां, अच्छा काम था इसीलिए याद रखा उन लोगों ने.किसी को तो ज़िम्मेदार ठहराना है, तो पुरानी दुश्मनी नामपल्ली पर निकाल रहे हैं.राजनीति के माने यही है,समझे?"

"यह तो सरासर नाइन्साफी है!भोले भालों को शिकार बनाएंगे?पर किसान भी अंधे नहीं हैं.सच झ्हूठ का फर्क नहीं जानते? कोई कुछ भी कह देगा तो यकीन कर लेंगे?"

"यकीन नहीं करेंगे तो क्या करेंगे?अगर यकीन न हो तो भी नाटक करेंगे कि यही सच है!मुंह नहीं खोलेंगे.क्यों कि गांव में बसएं आती जाती नहीं हैं ना?"

"अब बसों का यकीन से क्या संबंध है?"

"बहुत है,गाहालीस फुट सडक की आवश्यकता पर उसने सवाल उठाया.अधा गांव उससे नाराज़ है.अभी से यह बात फैलाने लगे हैं कि गांव के विकास में वह टांग अडा रहा है.लोग तो भेड  बकरे हैं...सिर हिलाते रहते हैं.फिर सूपरवैज़र भी तो उन्हीम्के पक्ष में हैं.!एक ही वार में दो चिडियां खतम!"

"दो चिडियां? कौन हैं वे दो?"

"तुम्हें सबकुछ बताना पडेगा क्या?क्या आज ही अमेरिका या सिंगापूर से आई हो?"

"अच्छा सिंगापूर के नाम से याद आया.सैदिरेड्डी की बात कर रहे हो ,क्यों?बेचारा किसीके भी मुंह नहीं लगता था.अपने काम से मतलब रखनेवाला और कमर तोड मेहनत करनेवाला सैदिरेड्डी.उसका ये लोग क्या बिगाडेंगे?"

"सबकुछ बेच बाचने केलिए मजबूर कर देंगे.उसपर मुकद्दमे चलाकार गांव गांव घुमाएंगे.आखिर भिकमंगा बन जाए उसकी ऐसी हालत कर देंगे! उसका तो गांव में नाम है ना? कैसे बर्दाश्त कर सकेंगे?"

"पर वे ऐसा क्यों करेंगे?मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है!"

"देखो,फाइनान्स के जो अधिकारी हैं वे ही सडकों के कांट्राक्टर भी हैं.वे ही पानी का मामला देखनेवाले अधिकारी भी  हैं.उनमें से दो सैदिरेड्डी के पक्ष में हैं.सैदिरेद्देए ने मोती पूंजी लगाकर तालाब के नीचले ज़मीन में दस एकड में ब्
फसल बोई है.अब वह खूब लहलहा रही है ना, इसलिए."

"यह तो गलत बात है.ऐसा नहीं होना चाहिए!"

"हां,गलत तो है ही. कल पहले सैदिरेड्डी नामपल्ली को पीटेगा.क्या वह गलत नहीं होगा?और सैदिरेड्डी को शराब पिलाकर उकसाना उससे भी बडी गलती होगी,है ना?और नामपल्ली भी चुप नहीं रहेगा...हाथापाई होगी...एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएंगे दोनों.दोनों के सर फूटेंगे.गांव दो वार्गों में बंट जाएगा...क्या ये सब गलत काम नहीं?इतना सब होने के बाद भी दोनों न्याय मांगने गांव के बडों के पास ही जाएंगे!फैसला सुनाने का नाटक कर वे इन्हें पुलिस के हवाले कर देंगे.वह भी गलत होगा.पर बडों की सोच यही है कि एक वार में दोनों को खतम किया जाए.इस झगडे से एक और फायदा भी है.पानी की समस्या पीछे रह जाएगी और यही सबसे बडी समस्या बन जाएगी.बस यही होनेवाला है,देख लेना!"

"हां हां भविष्य बताना तो तेरा काम ही है!फिरभी इससे इन लोगों को क्या फायदा होगा?"

"फायदा नुक्सान की बात छोडो.अभी चुनाव होनेवाले हैं...इसलिए."

"चुनाव होंगे तो क्या?"

नामपल्ली पुराने सरपंच का आदमी है.पुराना सरपंच लोगों की भलाई चाहनेवाला है.वह जीत जएगा...फिर उसपर कीचड उछाले बिना कैसे रह सकतेहैं ये?"

"अच्छा ये पासे फेंककर इंतज़ार करेंगे और जो कुछ होना है अपने आप होता रहेगा?ईमांदारॆ से पानी लाकर गांव के लोगों की मदद करनेवाला नेता कोई नहीं रहेगा?गांव के गांव मरघट बनते जाएंगे तो भी कोई चूं तक नहीं करेगा!पर यह तो बताओ कि गांव में पानी कब आएगा? आयेगा भी या नहीं?"

"आयेगा क्यों नहीं?आयेगा...ज़रूर आएगा.पर तब जब लोगों के आंसू सूख चुके होंगे.सारे खेत सूख गए होंगे!"

"तब आने से क्या होगा?"

"तबतक अधिकारी चेतेंगे नहीं.वह तो उनकी आदत है!एमएलए को या एम पी को यह बता देंगे कि फलां गांव को पानी दे दिया है और फिर उनकी ज़िम्मेदारी खतं समझो."

धूप तेज़ हो गई थी.तोते ने चारों ओर नज़र दौडाई.दूर गिद्ध बैठे दिखाई दिए.निढाल होकर पडे बैल को नोचकर खाने के इंतज़ार करतए आसमान में चक्कर काट रहे थे.

घबराकर तोता और मैना पेड की शाखों में छुप गए.

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मूल तेलुगु कहानी : पेद्दिंटि अशोक कुमार

अनुवाद : आर. शांता सुंदरी.

1 comment:

  1. ''यहाँ तक आते—आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
    मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

    ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
    वो सब के सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा

    कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उसके बारे में
    वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं ऐसा ,ऐसा हुआ होगा

    यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं
    ख़ुदा जाने वहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा''

    [दुष्यन्त कुमार]

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