Friday, May 27, 2011


आइ सी सी यू
===========

मेरी आंखें चौबीसों घंटे काम करती रहती हैं.मेरा दिल हरदम धडकता रहता है.मेरे हाथ अविराम चलते रहते हैं.

दीवार पर है मेरा निवास.मेरा नाम है घडी.

यहां इस दीवर पर बसे कुछ ही दिन हुए.जाने से पहले मेरे मालिक ने मुझे और मेरे भाइयों को धन्यवाद प्रकट करने केलिए इस अस्पताल को दे दिया.यहां के डाक्टरों ने दिल निचोड देने वाली बीमारी से बचाया,इस कारण या इस भ्रम में!उससे पहले हम सब एक ही जगह " टिक टिक","डिंग डांग","ठीक ठाक"रटते हुए जीते रहे.

जब से यहां आए,कुतूहल,उत्साह,उद्रेक,उद्वेग,में ही पल पल बीत रहा है... चल रहा है.

ठीक सामने बीच में मानिटर.मेरे सामने तीन बेड.मेरे बिल्कुल नीचे,मेरी आंखों से ओझल ,सिर्फ सुनाई देनेवाला एक बेड.मेरे दांईं ओर एक छोटा कमरे जैसा...पर कमरा नहीं.इसी जगह से वह भी जुडा है.वहां एक और बेड.

यह दिल की बीमारों का विभाग है.यहां जितने भी बीमार हैं उन्हें दिल की छोटी से छोटी शिकायत से लेकर बडी से बडी गंभीर बीमारी तक है.

मानिटर के सामने ज़रा आराम से बैठने लायक एक कुर्सी पर एक युवा डाक्टर,और उसके ठीक सामने मानिटर के उस तरफ,एक गोरी चिट्टी पंजाबी नर्स बैठे हैं.वह लडकी कुछ लिखती जा रही है.वह युवक भी कुछ लिख रहा है.

हां,यह दिन का वक्त है.रोमांस केलिए गलत वक्त!

तीनों बिस्तरों पर तीन बीमार हैं.तीनों को तारों से मानिटर से जोडकर रखा गया है.दिल के धडकने के विवरण इन मानिटरों से होकर सेंट्रल मानिटर में पहुंचते हैं.हरे रंग की लहरों जैसी लकीरें,हडबडी में भागते लोगों की भीड की तरह भाग रही थीं मानिटर पर.दिल के अंदर होनेवाली विद्युत कार्यों के नतीजों को दिखानेवाली हैं ये लकीरें.बीच बीच में होनेवाले छोटे छोटे परिवर्तन उस वक्त हो रहे खतरों या  आनेवाले खतरों के सूचक हैं.वैसे देखने में सभी लकीरें एक जैसी दिखती हैं,पर उनमें कई भिन्नताएं हैं.हर बार नई बीमारी का नाम सुनता हूं.लेकिन ज़्यादातर सुनाई देनेवाले नामों में से एक है,एक्टोपिक्स.

ये लोग ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे एक्टोपिक्स होने से कुछ नहीं होता.कभी कभी इसका होना खतरा भी माना जा रहा है.यानी कभी यह खतरा पैदा कर सकता है तो कभी नहीं भी पैदा कर सकता है.पता नहीं, यह सब मेरी समझ में नहीं आ रहा है.मैं बहुत उलझ गया हूं!

पहली बार जब मैंने इस एक्टोपिक्स के बारे में सुना,तो उस डाक्टर के चेहरे पर परेशानी, पसीने की बूंदें,आवाज़ में कंपन...सुनाई दी.मेरा दिल भी धक धक करने लगा.मैं कोई इन्सान नहीं, बेजान घडी हूं!जब मेरा ही कलेजा मुंह को आने लगा हो तो फिर इन्सान...खासकर औरतें... कैसे बर्दाश्त करती होंगी?पहली बार सुनने पर जो डर पैदा होता है,वह बार बार तसल्ली दिए जाने के बावजूद कम से कम शक बनकर मन में  रह जाता है!

अच्छा अब मेरे इन लेक्चरों को बंद करके आइए उनकी बातें सुनें-

पंजाबी नर्स ने युवा डाक्टर के कंधे पर मारा.वह निरीह बनने का नाटक करके बोला,"तेरे लिए यह अच्छा नहीं होगा!"

"मतलब?"

"सोच लो!"

"मैं किसीकी परवाह नहीं करती,"लडकी ने कहा.उसकी बेपरवाही उसके खडे होने के अंदाज़ से ही पता चल रही थी,उसकी आंखों में दिखाई दे रही थी.उस निडरता का कारण अनुभव की कमी है, यह बात वह नहीं जानती थी.

पर आए दिन मैं देख रहा हूं कि निडर इन्सान कोई भी नहीं होता...अरे,फिर मैं बीच में बोलने लग गया!

इनकी बातचीत और बर्ताव न जाने कहां पहुंच जाता,पर इतने में अचानक दरवाज़ा खोलकर एक कन्सल्टेंट, यानी सीनियर डाक्टर अंदर आ गया.

युवक खडा हो गया,लडकी भी संभल गई.इन कन्सल्टेन्टों को देखने से आंधी याद आती है.ये ज़मीन पर खडे नहीं होते,दीवार से पीठ नहीं सटाते,दिन रात भागंभाग लगी रहती है.कम से कम बीमारों को दो मिनट जांचने की भी इनके पास फुरसत नहीं होती.श्रम के सिवा विश्राम को जैसे जानते ही नहीं.चौबीसों घंटे रोगी,प्रेक्टिस, के हिसाब किताब में सर खपाते रहते हैं.

उसने पूछा,"बीमारों का क्या हाल है?"

युवक ने तोते की तरह रट दिया.नर्स ने जो भी कहना था कह डाला."गुड लक!"कहकर कन्सल्टेंट चला गया.
समझ में नहीं आया वह गुड लक किसके लिए था और क्यों था!

पहले रोगी का नाम था मनमोहन कृष्ण.उम्र बत्तीस.एक दिन रात को दिल में ज़ोर से दर्द उठा.कहता है सिगरेट नहीं पीता.कभी कभार,पंद्रह दिन में एक बार पी ज़रूर लेता है.अच्छी नौकरी,सुंदर पत्नी,ज़रूरतों को पूरा करनॆ केलिए पर्याप्त सम्पत्ति इसके पास है.

वह अपनी पत्नी को दिन में कई कई बार कमरे में बुलाता है.बेचारी वह क्या कर सकती है?आने केलिए युवा डाक्टर की अनुमति चाहिए.और यह कह देता है कि बार बार अंदर नहीं जाने दिया जा सकता,सिर्फ शाम कॆ वक्त आ जाइए.कभी समझाता है तो कभी डांट देता है,और कभी बिनती करने लगता है.

उस दिन छाती का दर्द बहुत बढ गया.ई सी जी निकाला गया.कहा,’एक्स्टेन्सिव एंटीरियल इन्फार्क्शन"दिल के आगे की दीवार पूरी तरह गायब है.उसकी बीवी से कहा कि हम इसे बता नहीं पाएंगे इसलिए तुम रो भी नही सकोगी!

"डाक्टर! मेरी बीवी को मेरे पास ही रहने दीजिए!"कहते हुए मनमोहन छाती पर हाथ रख लेता था.सचमुच दर्द है या नहीं यह भी मेरी समझ में नही आ रहा था.

दूसरे मरीज़ का नाम मैं नहीं जानता.मतलब, याद नहीं रहा.उसकी कश्मीरी गेट के पास एक कपडे की दुकान है.यह भी युवावस्था में है.चालीस पैंतालीस का होगा.ई सी जी के बाद बताया गया कि’एक्स्टेन्सिव एन्टीरियल इन्फार्क्शन’है.

यह भी सिगरेट तक नहीं पीता.डयबेटिस या,बी पी की शिकायत नहीं.पिछली कुछ पीढियों में भी किसी में यह बीमारियां के लक्षण नहीं दिखाई दिए.

मनुष्य बहुत सारे दरवाज़े खोल चुका है.पर उसकी जानकारी सीमित है.जब उसे पता ही नहीं कि कुल कितने दरवाज़े हैं,तो क्या कर सकता है?

तीसरा मरीज़ बूढा है.सांस की बीमारी का इलाज कराने आया है.पर यह तो बताया ही नहीं कि छाती में दर्द है.ई सी जी निकालकर देखा तो’इन्फीरियल इन्फर्क्शन’है,यह मालूम हुआ.आम तौर पर लगाई जानेवाली सुई को वहां न पाकर,बाकी कमरों से अलग तरह का यह विभाग,नीले रंग की दीवारे,यह सब देखकर बूढा बहुत खुश हुआ.बुलाते ही डाक्टर और नर्स हाज़िर हो जाते हैं,यह देखकर उसे संतोष मिला.

जब युवा डाक्टर ने यह कहा कि दोस्तों और रिश्तेदारों को अंदर नहीं आने दिया जाएगा, तो बूढे ने इंतज़ामात की तारीफ की.

चौथे बेड पर एंजीना का एक मरीज़ है.थक जाने पर,या ऊंची आवाज़ में बोलने पर इसके सीने में दर्द उठता है.ये सिगरेट बहुत पीता है.रातभर जागना इसकी रोज़ की आदत है.शराब पीने में वक्त या हालत के नियम का पालन नहीं करता.यह बी पी का भी मरीज़ है.पर नमक से परहेज़ नहीं कर सकता.इस वजह से इसे छाती में दर्द की शिकायत रहती है.इस बार ई सी जी के नतीजों में कुछ खराबी नज़र आई तो अब्ज़र्वेशन के लिए अस्पताल में ही उसे रोक लिया गया.

पांचवें नंबर बेड पर फिलहाल कोई नहीं है.पहले एक लडकी थी.उसका दिल कभी महम्मद रफी के गीत की तरह,’आहिस्ता...आहिस्ता...’धडकता तो कभी ’चाहे कोई मुझे जंगली कहे...’ गीत की तरह भागने लगता.उस बीमारी को’सिक साइनस सिंड्रोम’नाम देकर उसे कुछ दिन अस्पताल में रखा.कई तरह के परीक्षण करने के बावजूद कुछ समझ में नहीं आया तो,’वाइरल मयोकार्डाइटिस’,कहकर कल ही उसे घर भेज दिया.

आइ सी सी यू में भर्ती किये गये हर मरीज़ के बारे में पांच खास बातें पहचानकर,लिखने को कहती है छोटी लेडी कन्सल्टेन्ट.उन बातों में से एक है,’पीता है कि नहीं.’अमेरीकी किताबों के सिवा अपने देश की किताबें छूकर भी न देखनेवाला युवा डाक्टर कहता है कि इस लेडी डाक्टर को कुछ भी नहीं मालूम."मतलब, हो सकता है मुझसे दो बातें ज़्यादा जानती हो.पर उसका छः साल का अनुभव है,उस हिसाब से तो वह कम ही जानती है.अब इस पीने की बात को ही लें,यहां साफ लिखा है कि आल्कहाल और मयोकार्डियल इन्फार्क्शन में कोई संबंध नहीं है,"पंजाबी नर्स के कंधे पर एक चपत लगाकर युवा डाक्टर ने कहा.फिर उसने मेज़ पर रखी,कार्डियो वास्क्युलर डयाग्नोसिस अंड थेरपी,नामक किताब खोली.

"देखो छोटी है,पर कितनी प्यारी है यह...तुम्हारी तरह!"

"क्या? क्या कहा?"

"तुम्हारी तरह प्यारी है!पर एक फर्क है,इस किताब को जब चाहे चूम सकता हूं.तुम्हारे साथ ऐसा नहीं कर सकता!"

नर्स खिलखिलाकर हंस पडी.उसके गाल लाल हो गए.उसकी आंखों में शर्म और उस युवक के प्रति प्यार का भाव चमक उठे.उसने धीरे से कहा,"क्यों?"

"हाय...ऐसे तो ना देखो...!"वह गुनगुनाया.

"क्या कह रहे हो?"

"कुछ नहीं.सोच रहा हूं काश यहां ये मरीज़ न होते और  सिर्फ तुम और हम होते..."

"डाक्टर!"बेड नंबर वन का मरीज़,मनमोहन कृष्ण ने आवाज़ दी.

"येस!"युवक ने जवाब दिया.

"आर यू बिज़ी?"

आदत के मुताबिक युवक के मुंह से निकला,"नो!"

"यहां आकर बैठिए ना?"उसने कहा.

"कोई बात नहीं वहीं से कहिए. मैं सुन रहा हूं,"कहकर युवक ने नर्स की ओर देखा.उसकी आंखें कह रही थीं,’इसकी कहानी आज खतम नहीं होगी और हमारी शुरू नहीं होगी.’नर्स ने लंबी सांस छोडी और साथ के कमरे में चली गई.

मनमोहन ने कहना शुरू किया...

"मैं जब कालेज में पढता था..."

युवा डाक्टर गुस्सा पीते हुए बीच में बोल पडा,"क्या कोर्स किया आपने?"

"बी.काम."

उसने आगे कहा कि कालेज में वह लडकियों को बहुत छेडता था."मेरी कई लडकियों के साथ दोस्ती थी.वैसे साफ साफ कहूं तो औरत की पवित्रता पर मुझे विश्वास नहीं था.जिन्हें मौका नहीं मिलता वे ही पवित्र बनी रहती हैं,ऐसा मेरा मानना है.पर मैं यह ज़रूर चाहता था कि मेरी पत्नी पवित्र लडकी हो.मैं जब स्कूटर पर उसके साथ जाता हूं तो कोई उसकी ओर बिना पलक झपकाए देखता है तो मेरा खून खौल उठता है!सुन रहे हैं ना डाक्टर? यही है मेरा स्वभाव..."वह कहता जा रहा था,इतने में कमरे के अंदर उसकी पत्नी आई.हरे रंग के कपडों में उसका गुलाबी बदन फूल जैसा खिला था.उसपर टिकी नज़रों और मनमोहन की बातों में उलझे युवक को होश में आने में कुछ समय लगा.

वह जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया.मेज़ पर पडी लाल रंग की किताब उठाई.उसमें दिल के मरीज़ों केलिए दी गई सलाहों का अनुच्छेद खोलकर पढने लगा.पहले पढी गई बातों में भी नयी दृष्टि ,नया कोण दिखाई देने लगा,यह देखकर वह आश्चर्य से भर गया.छोटी उम्र में जो लोग इन्फार्क्शन के शिकार हो जाते हैं,उनके लिए उसमें कुछ सालाहें दी गई थीं.वे बातें सेक्स और शृंगार से संबंधित थीं.लिखा था कि सेक्स से पूरी तरह परहेज़ ठीक नहीं होता.ऐसा करने से मन में चिंता बढती जायेगी और दिमाग पर उसका बुरा असर पड जाएगा.

तो फिर कमज़ोर दिल के मरीज़ उद्रेक से भरे काम करेंगे तो यह कहां तक ठीक होगा?इससे संबंधित बातें पढते हुए आराम से बैठकर सोचने लगा वह युवा डाक्टर.

"डाक्टर!"फिर मनमोहन ने बुलाया.

युवक उठकर उसके पास गया. इस बार उसके मन में मनमोहन की बातें सुनने की उत्सुकता थी.मनमोहन ने भी अपने मन की बातें,अपनी सारी शंकाएं साफ साफ युवक के सामने रख दीं.उसने कहा :

"मैं नहीं चाहता कि मेरी पत्नी मेरी इस नाज़ुक हालत की वजह से अपनी कमज़ोरियों का शिकार हो जाए.यह मैं बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा.यही बात पल पल मुझे खाए जा रही है.इसीलिए मैं चाहता हूं कि मेरी पत्नी हमेशा मेरी आंखों के सामने रहे."

युवा डाक्टर औरतों के प्रति अपनी राय के बारे में नहीं सोच रहा था.वह दिखावा करने लगा.भारतीय स्त्रियां,उनकी पवित्रता,इंडियन ट्रेडिषन,उसका प्रभाव...(मनमोहन की पत्नी के प्रति अपने असली भाव...उसके स्लीवलेस ब्लाउज,लोनेक की तरफ खुद ब खुद दौडने वाली अपनी नज़रें...इन सब बातों को चुपाकर,) उसके प्रति गौरव भाव प्रकट करने लगा.उसने कहा,"चाहे कितने भी कदम आगे बढा दे,भारतीय महिला तो भारतीय महिला ही रहेगी."यह कहने के बाद उसके मन में भरतीय महिलाओं के मन का संकोचशील और डरपोक स्वभाव के प्रति सचमुच ममता उभरी.

उसके बाद उसने आसानी से समझ में आने वाली भाषा में यह बताया कि,मनमोहन सेक्स में बिल्कुल कमज़ोर नहीं है. यकीन न हो तो लाल किताब एक बार पढने को कहा.एक दो वाक्य पढकर भी सुनाये.

*                                    *                                 *                                    *

एक दो दिन बाद मनमोहन को वार्ड में शिफ्ट किया गया.युवा डाक्टर सबको बताता फिरता था कि कभी कभी उसकी पत्नी लिफ्ट के पास दिखाई दे गई,या केंटीन में बैठी मिली.फिर उसने उन लोगों का ज़िक्र करना ही छोड दिया.शायद वे अपने घर चले गए.

*                                     *                                 *                                    *

दूसरे मरीज़ को एक्स्टेन्सिव एंटीरियर इन्फार्क्शन था,जिसका कारण साफ समझ में नहीं आ रहा था.इसकी वजह से मैं जान पाया कि एक्टोपिक्स कितनी भयानक चीज़ होती है. कई तरह के एक्टोपिक्स जल्दी जल्दी इसके बदन में आकर बस गए.दो दिन ड्रिप लगाया गया.दवाइयां दी गईं.यह सब करने के बावजूद वह ठीक नहीं हुआ तो डाक्टर सिर पकडकर बैठ गए.इसके घर वालों ने इसे हर तरह के छोटे बडे डाक्टर को...नामी और अनामी वैद्यों को दिखाया.उनका क्या है,आए,देखा और अपनी फीस लेकर खुशी खुशी चले गए.एक ने कोई दवाई लिखकर दी और दूसरे ने उसे लेने से मना कर दिया.अंत में मरीज़ को वे ही दवाइयां दी गईं,जो युवा डाक्टर और नर्स के पास थीं.

एक स्पेशलिस्ट डाक्टर ने कहा,"पेसिंग केलिए यह आइडियल केस है!"

दूसरे ने कहा,"पेसिंग बेकार है."

एक दिन सुबह एक्टोपिक्स ने पूरी तरह फैलकर भयानक रूप ले लिया.इसी को वी.एफ. कहते हैं."वी एफ ...वी एफ..."चिल्लाकर,डीफिब्रिलेटर से मरीज़ को बिजली का झटका दिया युवा डाक्टर ने.बंद दिल की धडकन फिर से काम कर सकती है, यह मैंने पहली बार देखा.

धीरे धीरे मरीज़ ठीक होने लगा.दिन बीतते गए.

*                         *                              *                                           *

सुना है इलस्ट्रेटेड वीकली वालों ने दिल की बीमारियों और खून की नलियों से संबंधित आपरेशनों के बारे में एक विशेषांक प्रकाशित किया.उसके निकलने के हफ्ते दस दिन बाद दिल्ली और बंबई में दिल के मरीज़ बडी संख्या में डाक्टरों के पास जाने लग गए.इसी के बारे में गेट के पास खडे दो कन्सल्टेंट बात कर रहे थे.बात करके वे दोनों बाहर चले गए.युवा डाक्टर और पंजाबी नर्स मेज़ के पास बैठकर खानों में +,०,भरने वाला खेल खेल रहे थे.उनकी उस दिन की ड्यूटी खतम हो चुकी थी.

"मैं जीत गया तो तुम मुझे टाफी से भी बडी टाफी दोगी,और तुम जीती तो मैं दूंगा!"युवा डाक्टर ने कहा.

"क्या मतलब?"

"नहीं जानती?!"शरारती मुस्कान के साथ डाक्टर ने कहा.

"नहीं!"

"स्वीट स्वीट के...ओके?"उस लडकी की समझ में कुछ कुछ आया.तो कहा,"नो!"

"तो फिर मैं नहीं खेलता,जाओ!"

"चलो आरेंज जूस को दांव पर लगाते हैं.टाफी नहीं."

नहीं...टाफी..!"

नर्स ने हंसकर कहा,"ठीक है,टाफी ही सही."

दोनों खेलने लगे.

उस दिन तीन खास बातें हुईं.

एक - तीसरा मरीज़,बूढा,सुबह डिस्चार्ज होकर चला गया.

दो - दोपहर को आइ सी सी यू में जब कोई तीसरा नहीं था,दूसरे नम्बर  बेड के मरीज़ ने अपनी पत्नी को चूम लिया.पर युवा डाक्तर ने देख लिया और पत्नी को डांट भी दिया.

मरीज़ ने आवेग और उद्रेक के कारण ऐसा किया था या प्यार और मुहब्बत के कारण मैं नहीं जान सका.

पंद्रह मिनट के बाद फिर वी.एफ वी. एफ. चिल्लाया गया.फिर वह सारी प्रक्रिया की गई...पर इस बार कोई फायदा नहीं हुआ. बात नहीं बनी.

दूसरे नंबर का मरीज़ नहीं रहा.

क्या सचमुच भावोद्रेक के कारण ही ऐसा हुआ था?!

इस तरह आइ सी सी यू में किसी के न होने की वजह से युवा डाक्टर और पंजाबी नर्स का खेल ज़ोरों पर था.

अचानक तीसरी खास बात हो गई.

शाम को साढे सात बजे,जब युवा डाक्टर की ड्यूटी खत्म होने को आई,मनमोहन कृष्ण फिर छाती में तेज़ दर्द के कारण वापस आया.उसे अडमिट करना पडा.

ई सी जी में हुए परिवर्तन दोबारा सामान्य स्थिति में पहुंचने से पहले ऐसा दर्द उठा है,इसलिए हम नहीं कह सकते कि यह सचमुच हार्ट अट्टेक है या नहीं,"छोटी लेडी डाक्टर ने कहा.थोडा रुककर फिर कहा, "इसे कुछ नहीं हुआ.फौरन डिस्टिल् वाटर का इंजक्शन दे दो,"

"उसके सीने पर ’पेरिकार्डिअयल रब’ साफ सुनाई दे रहा है,और वह दिल की बीमारी का सूचक है."कन्सल्टेंट ने कहा.

खेल और आरेंज जूस के नशे में डूबे युवा डाक्टर का सिर चकरा गया.समझ में नहीं आया कि लाल किताब से उसने जो वाक्य पढकर सुनाए वह कहां तक काम आए.

अगर मनमोहन को दिल की बीमारी न होने की बात सच है तो...फिर यह सारी गडबड इस बंद माहौल में रहने की वजह से ही हुई थी?

इतने आधुनिक ढंग से, बडे ध्यान से मरीज़ों की सुरक्षा का प्रबंध किए जाने के बावजूद,इस आइ सी सी यू का प्रयोजन बस,इतना ही रह जाता है?

तीसरा मरीज़,इसी माहौल में,इन नीली दीवारों के बीच आराम पाकर,ठीक होकर घर चला गया था ना?यह सब इस प्रबंध के कारण नहीं हुआ?आज सुबह ही मैं आइ सी सी यू का कमाल देखकर खुश हो रहा था ना?

पढी हुई बातें,जिनपर यकीन किया था,जिन बातों को बडे बडे डाक्टरों ने बताया,वे सब बातें मरीज़ों को पढकर सुनाया और उनपर यकीन करके मात खा बैठा.

अब मुझे क्या करना चाहिए?

लोगों को क्या संदेश दूं? उसका मन उलझन में पड गया.

जब खुद इतने सारे सम्देहों से दिमाग भर गया हो तो दूसरों को क्या संदेश दे सकूंगा? खुद को पानी की बूंद से भी छोटा महसूस करके युवा डाक्टर  पंजाबी नर्स से आरेंज जूस या टाफी मांगना भूल गया.


--------------------------------------------------------------------------------------------------

मूल तॆलुगु कहानी :डा.श्याम

अनुवाद :आर्.शांता सुंदरी




No comments:

Post a Comment