Thursday, October 6, 2011

टिहिली का ब्याह
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दो पहाडियों के बीच रिश्ता बना.बाजे गाजे बजने लगे.गांव शहनाई और ढोलक के सुरों में भीग गया.पूरा गांव ’धिंसा’नाचने लगा तो रात रंगीन हो गई.हर एक पेड हाथ हिलाते हुए फूल बरसाने लगा.धरती पर चांदनी रुपहले धागों से बुनी चूनर सजाने लगी ...टिहिली के ब्याह में!

पहाडी देवताओं का ध्यान करते हुए,गाते हुए जोडी को आसीस देने की प्रार्थना करने लगा था पुरोहित.उसने दूल्हे को मंडप में लाने को कहा.लोग दूल्हे को ढूंढने लगे...घर में देखा...गली में ढूंढा.गांव का चक्कर लगाकर आए.

इस बीच एक लडका भागता आया और चिल्लाने लगा कि दूल्हा धर्मू,कहीं भी नहीं मिला.

सब उतावले होने लगे.लोग समझने लगे कि टिहिली को चिढाने केलिए कहीं जाकर छिप गया होगा.गांव का पंडित दीसरी उंगलियों पर कुछ गिनते हुए आसमान में सितारों को देखने लगा.मुहूरत में अब कुछ ही समय बाकी रह गया था,तो सब के दिलों में तरह तरह के संदेह और सवाल उठने लगे.

धर्मू के घर के सामने हरे पत्तों का चांदोवा बना था,उसके नीचे एक चारपाई थी.उसपर एक मूसल,रस्सी और अनाज मापने का एक बर्तन थे.घर के द्वार के सामने ताज़ा खोदी गई नाली थी.चांदोवा के नीचे जंगली फूलों की महक फैली थी.नई नवेली दुल्हन टिहिली ने परंपरागत विधि से साडी बांधी थी.उसकी आंखों में हल्की सी नमी थी...

शाम तक शादी की रस्मों में शरीक होता रहा था धर्मू...द्वार के सामने बनी नाली पर खडॆ होकर पुरोहित के आसीस पानेवाला धर्मू...दोनों के पैरों के बीच आग में सुगंधित धूप डालकर,उस धुएं को नाली के पार कराते वक्त,दोनों के पैरों के बीच मुर्गे की बलि देकर उस खून को नाली में बहाते वक्त...टिहिली को गिरने से बचाने केलिए उसकी कमर में हाथ डालकर गुदगुदी पैदा करनेवाला धर्मू...कहां गया?चारपाई पर बैठकर,उल्टे बर्तन पर हल्के से टिहिली के पैरों को अपने पैरों से दबानेवाला धर्मू...रिश्ते नातेदारों से जंगली फूल और पत्ते अक्षत के रूप में स्वीकार करनेवाला धर्मू...मूसल को हाथों से घेरकर टिहिली के गले में हल्दी से रंगा धागा(मंगलसूत्र)बांधने के ऐन वक्त पर वह कहां चला गया?

"मैंने पहले ही कहा ना था? वह पढा लिखा है,उसपर हम कैसे यकीन कर सकते हैं?"किसीने टिप्पणी की.

"चुप कर तू.वह ऐसा नहीं है.पता नहीं उसके साथ कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई?"

तरह तरह के सवाल,शंकाएं सर उठाने लगीं.वहां की हवा इस वजह से गरम हो गई.खुशबू बिखेरनेवाली हवा थम गई.टिहिली की आंखों से आंसुओं की बूंदें एक एक कर गिरने लगीं...

जब धर्मू डिग्री के दूसरे साल में था,तब उसके मेडम ने उसे टिहिली के पास यह कहकर भेजा था कि,इससे बात करके देख लो,तुम्हारे शोध कार्य केलिए शायद कुछ विषय मिल जाए.

धर्मू आदिवासी बस्ती में गया और टिहिली को अपना परिचय देते हुए कहा,"मेरा नाम धर्मू है.केंपस से आ रहा हूं.आदिवासी कलाओं के बारे में शोध कार्य कर रहा हूं."

"टिहिली को संकोच करते देखा तो फिर कहा,"आप इतमीनान रखिए.बस मुझे आपसे सिर्फ कुछ जानकारी लेनी है,बस."धर्मू उसे केंटीन की ओर ले गया.बातों बातों में मालूम हुआ कि धर्मू के मां बाप गुज़र गए और वह रिश्तेदारों के घर में रहकर बडा हुआ.किसी सज्जन की मदद से यहां तक पढाई कर सका,और उन्हीं के प्रोत्साहन से अब यह शोध कार्य भी शुरू किया.यह भी पता चला कि धर्मू भी आदिवासी परिवार से ही है.

"आदिवासी होकर हम इस तरह अपना रहन सहन,वेश भूषा,अपनी भाषा संस्कृति भूल रहे हैं.यह बडे दुःख की बात है,है ना?"उसने चाय की घूंट भरते हुए कहा.

टिहिली ने सिर हिलाकर हामी भरी.

उसके बाद अक्सर दोनों कालेज में मिलने लगे.त्योहारों के बारे में,आजकल गांवों की हालत के बारे में,किसी न किसी बात पर बोलता रहता था धर्मू.उसके रूममेट माज़ाक करते तो भी वह हमेशा गंभीर बना रहता.कभी सीमा नहीं पार करता था.

"टिहिली!"एक दिन उसने नाम लेकर लडकी को पुकारा.

टिहिली ने आंख उठाकर देखा.

"आपका नाम बडा अजीब है!"

टिहिली आंखों से हंसी.

"आपका नाम पुकारता हूं तो लगता है कोई जंगली चिडिया उड रही है...या जंगली फूल हवा में हल्के से झूम रहा है!"धर्मू ने कहा तो टिहिली शरमा गई.

गरमियों की छुट्टियों में...

गांव से दूर पहाड पर टिहिली काम कर रही थी,तभी एक आदिवासी गीत सुनाई दिया...

’आलिरोदूता पहाड पर
कंद मूल उग आए
पत्ते पर लिख भेजा संदेश
बांस की टहनी पर चढ आऊंगी!’

गीत पुराना था.लगता था कोई आदि मानव खुले गले से गा रहा है.पर आवाज़ जाना पहचाना लगा...कहां सुना था? टिहिली सोच में पड गई.

सिर उठाकर देखा ...धर्मू कुदाल लेकर मिट्टी खोद रहा था.वहां अचानक वह दिख गया तो मन के किसी कोने में छुपी खुशी बाहर प्रकट हो गई.अनायास कदम उसकी ओर चल पडे.

पहाड की चोटी...गांव बहुत दूर था.नीला आसमान,हरे भरे पेड,डालियों पर चहचहाते पंछी ,इन्हें छोडकर आसपास कोई नहीं था.

"तुम मेरी देखभाल कर सकोगे?"टिहिली ने पूछा.

"खुद परख लो,मालूम हो जाएगा!"अपने मज़बूत हाथ दिखाते हुए धर्मू ने कहा.

"इतनी दूर क्यों आए?"

"तुम्हारे लिए इन पहाडों को पार करके आ गया."

"खाना खिला सकोगे मुझे?"

"आटे का पसावन बनाकर खिलाऊंगा."

"और क्या करोगे?"

"हाट में लाल चोली का कपडा खरीद दूंगा.बस में फिल्म देखने ले जाऊंगा."

"और?"

"तुम्हें बुखार हो जाए तो दवा देकर सेवा करूंगा."

"और?"

"काले आसमान के नीचे बांहों में भींच लूंगा!"

वह शरमा गई...जैसे लाल लाल ढाक के फूल चारों ओर बिखर गए!

वह हंस पडा,जैसे हवा का झोंका बह गया...जब तक हवा का झोंका चलता रहा,ढाक के फूल गिरते रहे.


* * *



’जेके गांव की लडकी बालों में चमेली के फूल लगा आई
यहां चारपई बिछाकर किस ओर चली गई?’

हवा के साथ यह गीत कानों तक आ रहा था.पहाड,नदियां पार कर,डाली डाली से बतियाते हुए चला आ रहा था वह गीत.वह जमाई सास को संबॊधित करके गानेवाला गीत है.ब्याह से पहले रिश्ता मांगने केलिए आनेवाला यह गीत गाता चला आता है.

दीसरी जानता था कि वे शुभ दिन थे.उसने आसमान की ओर देखा. सूरज सिर के ऊपर चढ आया.ये घडियां भी अच्छी हैं.किसी गांव से लडकेवाले लडकी का हाथ मांगने आ रहे हैं.गाना पास आ गया.सामने वह युवक था.उसके साथ बुज़ुर्ग भी थे.सब अपरिचित.सीधे उसके घर की तरफ आने लगे तो वह हडबडाकर उठा और पीने केलिए पानी देकर चारपई डाली.

"कैसे हैं?कब निकले थे घर से?"दीसरी ने यह जानने के लिए पूछा कि वे किस गांव से आ रहे हैं.

"सुबह सुबह निकल गए थे संदुबडि से."

"अच्छा इसी लिए तो...ओडीशा के पहाडों के पार है ना आपका गांव?तभी कहूं पहचाने नहीं लग रहे हैं!"

देहलीज़ पर साडी और चूडियां रखीं.गिलास में शराब डाली.दीसरी समझ गया कि वे उसकी बेटी का हाथ मांगने आए हैं.

"दूल्हा कौन है?"दीसरी ने पूछा

धर्मू मुस्कुराया.दरवाज़े के पीछे से झांकती टिहिली शरमाकर अंदर भाग गई.दीसरी ने गौर किया.उस दिन पहाड पर धर्मू का गाना और उसके बाद टिहिली के सवालों के बारे में वह सुन चुका था.आदमी का गाना सुनकर औरत जवाब दे तो समझना चाहिए कि उसे आदमी पसंद है.

"आप किस जात के हैं?"दीसरी ने पूछा

"आरिकोलु,और क्या?"

दीसरी ने मन ही मन हिसाब लगाया कि इस जात में पहले कितने लोगों के साथ उसके पुरखों ने ब्याह रचाए थे.

गांव के बडे बुज़ुर्ग एक एक करके आने लगे.लडके को एक नज़र देखकर बैठने लगे.सहेलियां चिढाने लगीं तो टिहिली शरम से लाल होने लगी.दीसरी और बुज़ुर्गों के मन में एक ही सवाल हलचल मचा रहा था,कौन है यह जवान?

मौका पाकर धर्मू ने टिहिली को पकडा और पूछा,"सच बताना,क्या तुम मुझे नहीं पहचानती?"

"मैं तो जानती हूं...पर बाबूजी और गांव के बडे,उन्हें भी तो मालूम होना ज़रूरी है ना?"टिहिली ने उदास होकर कहा.दोनों जानते थे कि उस रोज़ धर्मू के बारे में सब समाचार मालूम न होने की वजह से ही दीसरी ने साडी और चूडियों को छूने नहीं दिया था.शराब को भी हाथ नहीं लगाया था.

टिहिली का बाप उस गांव का मुखिया था.सबको भला बुरा समझानेवाला वही गलत काम करे तो फिर गांव बिगड जाएगा,वहां के नीति नियम खराब हो जाएंगे!इन बातों के अलावा,धर्मू पर शक करने का असली कारण था,जब वह रिश्ता मांगने उनके गांव आया तब...उस दिन...

सारा गांव चांदनी की रोशनी में,ढोलकों के धम धम के बीच उत्सव मनाते हुए नाच रहा था...उसी रात,सोमेसु,उर्फ चम्द्रन्ना ने गांव में कदम रखा.उसके पीछे एक युवती भी थी.ढोलकों की धम धम थमने तक गांव के लोग समझ गए कि वे दोनों पुलिस के आगे आत्मसमर्पण कर चुके हैं,दोनों में प्यार हो गया था और इसलिए गुट में रहकर काम करना मुश्किल हो गया था.आम लोगों जैसा जीवन बिताने का फैसला कर लिया था.यह खबर अगले दिन अखबारों में भी छप गई.

अगले दिन गांव में पुलिस के सिपाही आ गए.एस पी के सामने दोनों ने एक दूसरे को वरमालाएं पहनाईं.एस पी साहब ने दोनों को नये कपडे और आशीश दिए,और कहा"इन्हीं की तरह बाकी लोग भी गुट को छोडकर समाज में आकर मिल जाएं,यही हमारी इच्छा है!"

तभी रिश्ता मांगने आए धर्मू पुलिसवालों से बात करते हुए सबको दिखाई दिया.उस दिन भी उनके मन में यही सवाल उठा,’कौन है यह?’इसके गांव में कदम रखते ही यह आत्मसमर्पण करनेवाले अचानक कैसे आ धमके?फौरन पुलिस,पत्रकार...! किसका आदमी है यह?सब के दिलों में डर,संदेह उठने लगे.

शादी का मंडप सुनसान हो गया...हर तरफ खामोशी छा गई.सब अपने अपने काम में मशगूल हो गए .तरह तरह की बातें करने लगे..."ब्याह में माइक सेट का होना ज़रूरी है.बेंड होना चाहिए,यह क्या है भाई पुराने ज़माने का ब्याह लगता है?"एक युवक झुंझला उठा.

"कहीं पुलिस ने तो कुछ नहीं किया...?"किसीने कहा.अचानक उस बात से मंडप में फैली खामोशी टूट गई.

"अरे क्या बात करते हो भाई?उन्हें इससे क्या लेनादेना?"धर्मू के एक दोस्त ने कहा.

"क्या जाने?हमारे गांव में वही एक पढालिखा बंदा है.बात बात पर टाउन जाता रहता है.इसी बात से कहीं उसपर उन्हें शक हो गया हो...?"

"अरे बेकार की बातें करके हमको भी डरा रहे हो...छोड ना...!"कहने को तो कह दिया पर उस आदमी के मन में भी डर घर करने लगा....कहीं यही सच ना हो...

टिहिली का दिल ज़ोरों से धडकने लगा.उसकी आंखें भर आईं.मंडप में हो रही बातें और पुरानी यादें मिलकर उसके मन में खलबली मचाने लगीं...

’सास से कहकर पिटवाया
ससुर से कहकर पिटवाया
सासू मां कहो तुम्हारी बेटी से बाहर आए
मैं फूल देकर चला जाऊंगा’

कुवी बोली में दूल्हा धर्मू गाते हुए नाचने लगा.उसके पीछे पहाड चलकर आएगा ,उसपर बहता झरना चलकर आएगा.सारे पत्ते मिलकर उसके गीत में ताल दे रहे हैं.

फिर एक दिन...

साडी और चोली देहलीज़ पर रखीं.गिलास में शराब डालकर रखा.

दीसरी ने बेटी की ओर देखा.उसके चेहरे पर उदासी थी.वह बाप की इजाज़त का इंतज़ार कर रही थी.नहीं माना तो...? आधी रात को उसके साथ...!तब वह क्या कर सकेगा?बेटी ने जो इज़्ज़त दी उसे बनाए रखना ही ठीक होगा.बिन मां की बच्ची है.उसके मन मुताबिक शादी करना ही ठीक है,यह मेरे लिए भी खुशी की बात होगी.दीसरी सोचने लगा.सब उसके फैसले के इंतज़ार में थे.

उसने सिर हिलाया...’हां’ कहा.शराब का गिलास उठाया,दो चार बूंद मुंह में डालकर दूल्हे के बाप को दिया.टिहिली की आंखों से चांदनी झरने लगी.उसकी हंसी सुनकर गली के छोर पर ढोल बज उठा.सब लोगों ने शराब पी.साडी और चूडियों की तरफ टिहिली ने प्यार से देखा.शहनाई के सुरों में सारी गलियां भीग गईं.जंगल पर से गुज़रकर वह खुशबू धर्मू के दिल को छू गई.सारा गांव पंक्तिबद्ध होकर धिंसा नाचने लगा.

बेटी के ब्याह का महूरत निश्चय किया दीसरी ने.उस धूमधाम के बीच वापस लौटते वक्त एक युवक ने आकर धर्मू के कान में कुछ कह दिया.धर्मू के चेहरे का रंग बदल गया.

"इस वक्त?"धर्मू ने पूछा.

"हां,अभी...गांव के बाहर हैं वे"युवक ने बताया.

"चल..."धर्मू उसके साथ हो लिया.

गांव के सिवानों में,सडक से दस कदम दूर पेड के नीचे एक सेंट्री खडा था.उसके पीछे भारी बैग और हाथियार लिए चट्टानों पर बैठे थे कुछ लोग...काले सायों की तरह.जंगल के अंदर कहीं एक तीतर बोलने लगा.चांद को एक बादल का टुकडे मे ढंक दिया.

"अब तुम जा सकते हो,"यह सुनते ही धर्मू वापस लौट आया.

दीसरी ने जो महूरत निशित किया वह घडी आ गई.दूल्हे का परिवार दुल्हन के घर पहुंच गया.ढोलकों का शोर,शहनाई के सुर पहाडों में गूंजने लगे.पुरोहित सभी पहाडी देवताओं का स्मरण करते हुए प्रार्थना करने लगा कि लडकी को सभी भूत प्रेतों से बचाए,वह खूब बच्चे पैदा करे और सुखी रहे.उसके बच्चे पहाड पर कामकाज करने की हालत में तंदुरुस्त रहें इस बात का आशीर्वाद देने लगा.

नई लुंगी में चावल बांधकर,मुर्गे को देवता के आगे रखकर फिर दूल्हे को पकडाया.घडियां गिनने के बाद कहा,"अब निकल पडो!"

" यह लडकी हमारे संग खेली थी
साथ मिलकर काम करती रही
अब तेरे संग चल पडी
डाल की कली कहीं मिट्टी में न गिर जाए
फूल बने
फल बने
बीज बन फिर उगे..."

अपनी बोली में, सारा गांव, यह गीत बनकर,टिहिली और धर्मू को विदा करने सिवानों तक साथ चला.नई कोंपल से भरे ढाक के पेड सी थी टिहिली.जंगल की समूची सुंदरता उसके चेहरे में रौनक पैदा कर रही थी.लोगों ने उसके सिर पर फूलों की छतरी पकडी.उसके ऊपर साडी को फैलाकर पकडा.फूल जैसी लडकी पर कोई भी फूल ना गिरे...इमली का फूल तो बिल्कुल भी ना गिरे...ऐसे उमंग से भरे गीत गाते हुए चलने लगे.

"आपकी लडकी हमारे घर का दीया होगी
सुख हो या दुःख हमारे संग रहेगी
यह हमारे घर की देवी है
इसकी आंखों को कभी भीगने नहीं देंगे हम"

दूल्हे का मामा टिहिली को कंधे पर उठाकर आगे बढा.पत्थरों पर चलते वक्त कहीं उसके पैरों का महावर बिखर न जाए इस बात का ध्यान रख रहे हैं.रास्ते भर जंगली फूलों की महक चलने के श्रम को भुला रही है.पहाड,नदियां,मेंड पार करते हुए चांदनी की धारा में आगे बढते जा रहे हैं.

बारात के मंडप में पहुंचने तक जंगल पर चांदनी छाई रही.पुरोहित और दीसरी मिलकर आधी रस्में पूरी कर चुके थे.इतने में यह खबर मिली.

टिहिली सोचने लगी...

न जाने कहां गया?किस ओर गया?
क्या मुझे धोखा देना चाहता है?
नहीं,धर्मू आएगा...ज़रूर मेरे लिए आएगा.बाकी शादी की रस्में भी पूरी होंगी.धर्मू तब मेरा अपना हो जाएगा.महूरत की घडियों के खत्म होने से पहले आ जाएगा.

ब्याह होगा.सुबह होगी.गांव छोडकर गाजे बाजे के साथ बिदा हो जाऊंगी.बहती धारा में वह मेरी कमर पर हाथ डाले मेरे पीछे खडा हो जाएगा.दोनों के पैरों के बीच पुरोहित मुर्गा रखकर उसे काटेगा.लाल रंग का पानी हमारे पैरों के बीच से होकर बहेगा.पुरोहित दोनों को आशीश देगा.धर्मू मुझपर पानी डालेगा.मैं भी डालूंगी.भीगे ,हल्दी से पीले कपडों में उसके स्पर्श से मैं सराबोर हो जाऊंगी.फिर दोनों तरफ के रिश्तेदार एक दूसरे पर नदिया का पानी छिडकेंगे.नदिया रंगों से भर जाएगी.भीगे कपडों में उसका गांव पहुंच जाएंगे.एक हरे भरे पेड के नीचे दूल्हे की बहनों और बहनोइयों को मैं हल्दी मिले पानी से स्नान कराऊंगी.

उसके बाद...

बुज़ुर्ग लेन देन की बात करेंगे.धर्मू वचन देगा कि वह मेरी अच्छी देखभाल करेगा.वचन तोडने पर जुर्माना भरने का भी वादा करेगा...

उसके खयालों में अडचन पैदा करते हुए अचानक मंडप में हलचल मच गई.

एक लडका दौडता आया.वह तेज़ दौडने से हांफ रहा था."अरे क्या बात है? क्या हुआ?"पूछते हुए सब उसके पास पहुंच गए.

"वहां...नदिया के किनारे...धर्मू बेहोश पडा है...!"उसने बताया.

सब चिंतित हो गए,घबरा गए..."कहां? बता...किधर?"वे परेशान होकर पूछने लगे.

उस लडके ने रास्ता दिखाया.उसके पीछे लोग मशाल और टार्च लेकर दौड पडे...

नदिया के किनारे...घाटी में...खून से लथपथ...शादी के कपडों में बेहोश पडा था धर्मू.उसे उठाकर बाहर लाए.पानी छिडक कर होश में लाने की कोशिश करने लगे.

ज़रा सी हरकत हुई...उसने आंखें खोलीं.उसे घेरे खडे थे उसके अपने.उनके सिरों के ऊपर घने पेडों की छतरी थी....उससे परे था नीला आसमां.आस्मान में तारे टिमटिमा रहे थे.

तारों को देखते हुए धर्मू ने पूछा,"महूरत निकल गई या अभी वक्त बाकी है?"

"अभी वक्त है बेटा...पर तू यहां कैसे गिर गया रे?क्या हुआ था?"धर्मू के रिश्तेदारों में से ऎक बुज़ुर्ग ने रुअंसे स्वर में पूछा.

"टिहिली कहां है?"धर्मू ने पूछा.

टिहिली दौडती आई.सब लोग हट गए और उसे रास्ता दिया.

धर्मू के हाथों में अधमरा खरगोश था. उसे टिहिली के आगे किया धर्मू ने.उसने कहा,"शादी से पहले अकेले शिकार करने का रिवाज है ना?"

"अरे,कमाल है बेटा...हम तो घबरा गए थे.पर आजकल यह रिवाज कहां रह गया है रे?यह तो अब पुरानी बात हो गई,सब छोड चुके हैं!"

"रिवाज तो ज़रूरी है!निभाना ही पडता है ना?"

"ठीक है...अब उठो...शुभ घडी निकल जाएगी.उससे पहले यह बांध दे,"कहकर हल्दी लगा धागा उसके हाथ में दिया पुरोहित ने.

ढोलक् बज उठा.मंजीरे ने भी साथ दिया.साथ ही धिंसा नाच भी शुरू हो गया.पहाड गूंज उठे.जंगल खुशी से झूम उठा.

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मूल कहानी : मल्लिपुरम जगदीश

अनुवाद : आर.शांता सुंदरी

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