Thursday, June 16, 2011


अफ्रीका में भाषा और साहित्य की राजनीति को लेकर न्गूगी वा थियांगो के विचार 
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अधिकतर अफ्रीकी साहित्य मौखिक रूप में उपलब्ध है.उसमें कहानियां,लोकोक्तियां,और कथनों के अलावा,पहेलियां भी होती हैं.अपनी पुस्तक,डीकोलोनैज़िंग द मैंड ,में न्गूगी अपने बचपन के दिनों में मिले मौखिक साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालते हैं.उनका कहना है,"शामों में आग के चारों ओर बैठकर कहानियां सुनते और कहते थे.उन दिनों की याद अभी भी मेरे मन में ताज़ी है.ज़्यादातर बडे ही बच्चों को कहानियां सुनाते थे,पर उस कार्यक्रम में सब लोग सम्मिलित होते थे और दिलचस्पी लेते थे.हम बच्चे खेतों में काम करनेवाले दूसरे बच्चों को वही कहानियां सुनाते."

अधिकतर कहानियों में जानवर होते थे.न्गूगी कहते हैं,"खरगोश शरीर से कमज़ोर ज़रूर था पर उसकी चतुराई गौर करने योग्य थी.वही हमारा हीरो था.परभक्षी जानवर,शेर,चीता,और लकडबग्घा जैसे जानवरों से लडनेवाले खरगोश हमें अपना लगता था.उसकी जीत हमारी जीत थी.और हमने सीखा कि कमज़ोर कहलाने वाले भी बलवानों पर विजय प्राप्त कर सकतेहैं."

न्गूगी के अनुसार,अफ्रीकी साहित्य को पढने केलिए उनकी विशेष संस्कृति,मौखिक साहित्य को सीखना अत्यंत आवश्यक है.उसीसे अफ्रीकी लेखक ,कथावस्तु,शैली और रूपक ग्रहण करते हैं.

आब प्रश्न यह उठता है कि अफ्रीकी साहित्य क्या है? न्गूगी को इसमे कुछ उलझन दिखाई देती है.वे कहते हैं,"इस विषय पर बहस करते हुए हमारे सामने कुछ प्रश्न आकर खडे हो जाते हैं...हम अफ्रीका के बारे में लिखे गये साहित्य की बात कर रहे हैं या अफ्रीकी अनुभवों के बारे में?क्या यह साहित्य अफ्रीकी लेखकों द्वारा लिखा गया है?अगर कोई अफ्रीकी लेखक ग्रीनलेंड को घटनास्थल बनाकर लिखता है तो क्या उसे अफ्रीकी साहित्य माना जा सकता है?" ये सब अच्छे सवाल हैं,पर न्गूगी कहते हैं कि ये सब सवाल उस सभा में उठाए गए थे जहां सिर्फ अंग्रेज़ी में लिखनेवाले अफ्रीकी लेखक उपस्थित थे.जो लेखक आफ्रीकी भाषा में लिखते थे,उन्हें निमंत्रण नहीं दिया गया था.

स्वदेशी स्वर के प्रति उपनिवेशन का इस प्रकार आंख मूंद लेने की प्रवृत्ति को न्गूगी ने प्रत्यक्ष अपमान माना था.उनका कहना है कि उपनिवेशन के दौरान मिशनरी और उपनिवेशी प्रशासकों ने प्रकाशन संस्थाओं को और शिक्षा संबंधी पुस्तकों को अपने अधीन रखा था.इसका मतलब था उन्हीं पुस्तकों और कहानियों को अहमियत और प्रचार मिलता था,जो धार्मिक थीं और कहानियों को चुनते वक्त ध्यान रखा जाता था कि अफ्रीकी जनता को अपनी वर्तमान स्थिति पर कोई भी सवाल उठाने का अवसर न दिया जाए.उन्हें यूरोप की भाषा  बोलने केलिए विवश करके उन्हें अपने अधीन रखने की कोशिश की जती थी.बच्चों को (भविष्य की पीढी) यह सिखाने की कोशिश की जाती कि अंग्रेज़ी में बोलना अच्छा है और स्वदेशी भाषा बोलना बुरा.भाषा को एक ऐसा वक्र माध्यम बनाया जाता कि बच्चों को अपने ही इतिहास से अलग किया जाता था.वे अपनी विरासत को सिर्फ घर में ही परिवार के साथ बांटते थे,यानी अपनी मातृभाषा में बोलते थे.पाठशाला में उन्हें बता दिया जाता कि आगे बढना हो तो सिर्फ उपनिवेशी भाषा में लिखे गये इतिहास को पढकर.उनकी पढाई लिखाई में से उनकी अपनी मातृभाषा को हटा देने से वे अपने इतिहास से अलग कर दिए जाते और उसके स्थान पर यूरोप के इतिहास और भाषा सीखने लग जाते.इस तरह अफ्रीकी लोग उपनेवेशियों के और मज़बूती से अधीन हो जाते.

न्गूगी का कहना है कि उपनिवेशन केवल शारीरिक शक्ति दिखाने की प्रक्रिया ही नहीं,बल्कि "बंदूक की गोली शारीरिक रूप से अधीनस्थ बनाने का तरीका थी.भाषा का उपयोग आत्मा की दासता का तरीका था."
केन्या में उपनिवेशन ने अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बनाकर उसका खूब प्रचार प्रसार किया, जिसके फलस्वरूप केन्या की भाषा में बोलचाल मुरझा गयी.इससे अफ्रीकी साहित्य नष्टभ्रष्ट हो गया.इसके बारे में न्गूगी लिखते हैं,"भाषा संस्कृति को लेकर चलती है,और संस्कृति(विशेशकर भाषण और साहित्य के द्वारा)समस्त मूल्यों को अपने साथ लेकार चलती है,जिनकी मदद से हम स्वयं को और समस्त संसार को देखते हैं."अतः,एक अफ्रीकी व्यक्ति जिसे महसूस करता है,उसे किसी दूसरी भाषा में कैसे अभिव्यक्त किया जा सकता है?

न्गूगी कहते हैं कि अफ्रीकी भाषा में लिखना सांस्कृतिक पहचान केलिए उठाये जाने लायक एक आवश्यक कदम है.सदियों से यूरोप द्वारा किए जा रहे शोषण के विरुद्ध ऐसा कदम उठाकर ही स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है.

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अनुवाद : आर.शांता सुंदरी.

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